लघुकथा: "छाया का मूल्य"

गर्मियों की दोपहर थी। सूरज अपनी पूरी तपिश के साथ आकाश में चमक रहा था। गाँव के बाहर एक आम का पेड़ था जिसकी घनी छाया में एक गरीब किसान थका-हारा बैठा हुआ था।
थोड़ी देर बाद, एक अमीर ज़मींदार घोड़े पर सवार वहाँ से गुज़रा। उसने किसान को नीचे बैठा देखा और घूरते हुए बोला, “यह पेड़ क्या तुम्हारा है, जो इसकी छाया में बैठे हो?”
किसान मुस्कराया और बोला,
“नहीं साहब, यह पेड़ तो भगवान का है। मैं तो बस उसकी छाया का शुक्रगुज़ार हूँ।”
ज़मींदार को उसका जवाब अजीब लगा। उसने अहंकार से कहा,
“अगर यह पेड़ मेरा होता, तो मैं तुम जैसे लोगों को इसकी छाया में बैठने भी न देता।”
किसान शांति से बोला,
“साहब, आप चाहे जितनी ज़मीन खरीद लें, लेकिन छाया कभी खरीदी नहीं जा सकती। यह तो प्रकृति का वरदान है, जो सबके लिए है – अमीर हो या गरीब।”
ज़मींदार थोड़ी देर चुप रहा। पहली बार किसी गरीब की बात ने उसके घमंड को झकझोर दिया। उसने किसान की तरफ देखा, मुस्कराया और पेड़ की छाया में उतरकर खुद भी बैठ गया।
नैतिक शिक्षा:
प्रकृति के उपहार सबके लिए समान हैं। अहंकार से नहीं, विनम्रता से जीवन जीना ही सच्चा सुख है।
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