अंतिम चिट्ठी- एक लघु कथा

रमेश पोस्टमैन था। तीस वर्षों तक उसने हजारों चिट्ठियाँ बाँटी — कभी प्रेम की, कभी दुःख की, कभी खुशी की।

रिटायरमेंट के आखिरी दिन वह एक बूढ़े आदमी के दरवाज़े पर गया। हाथ में एक चिट्ठी थी।

बूढ़ा कांपते हाथों से चिट्ठी लेकर बोला, “तुम्हारे कारण ही मैं ज़िंदा हूँ, बेटा। हर महीने मेरी बेटी की ये चिट्ठी आती है… पढ़कर जी लेता हूँ।”

रमेश मुस्कुराया, “ये आखिरी चिट्ठी है, बाबा… मेरी नौकरी भी आज खत्म हो गई।

बूढ़े ने चिट्ठी खोली… लिखा था —
"पापा, अब डाक नहीं भेजूंगी। अगली बार मैं खुद मिलने आ रही हूँ।"

बूढ़े की आँखों से आँसू बह निकले।
रमेश चुपचाप चला गया… शायद हमेशा के लिए।

संदेश: हर छोटा कार्य भी किसी के जीवन में बड़ी उम्मीद और सहारा बन सकता है।

रमेश जैसे साधारण व्यक्ति, जो "सिर्फ चिट्ठियाँ पहुँचाते हैं", वास्तव में लोगों के जीवन में भावनाओं का सेतु होते हैं। बूढ़े व्यक्ति के लिए हर महीने आने वाली बेटी की चिट्ठी उसका जीवन बन चुकी थी — और रमेश उस जीवन का मौन रक्षक।

 

 

Leave a Reply



comments

Loading.....
  • No Previous Comments found.