"सपनों की उड़ान"- एक दिल से निकली पुकार

सपनों की भी क्या अजब कहानी,
कभी हँसी, कभी आँखों में पानी।
कभी ये चुपके से मुस्काते हैं,
कभी चुपचाप ही टूट जाते हैं।
नींद की गोद में आते हैं चुपके,
उम्मीदों की चादर ओढ़ कर।
हकीकत से जरा दूर रहते हैं,
पर दिल के बेहद पास होते हैं।
कभी बचपन की शरारत बनते,
कभी जवानी की चाहत बनते।
कभी माँ की ममता से महकते,
तो कभी पिता के संघर्ष में ढलते।
हर कोई अपने सपनों का राही,
कोई मंज़िल पाए, कोई राह ही।
कुछ पूरे हो भी जाते हैं,
कुछ बस यादों में रह जाते हैं।
पर फिर भी हम हर रात,
नए ख्वाबों से करते हैं बात।
क्योंकि यही तो है ज़िंदगी की जान,
सपनों से ही तो है उड़ान।
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