लघु कथा : "आख़िरी सिक्का"

रवि स्टेशन पर बैठा था। जेब में कुल मिलाकर बस पाँच रुपये थे। नौकरी की तलाश में तीन महीने घर से दूर रहा, पर कहीं कुछ नहीं मिला। थका-हारा, निराश, अब घर लौट रहा था।

प्लेटफॉर्म पर एक छोटा बच्चा भीख माँग रहा था। वह पास आया, आँखें बड़ी-बड़ी और मासूम। रवि ने नजरें फेर लीं, पर बच्चे की नज़रों में कुछ था — भूख नहीं, उम्मीद।

रवि ने अपनी जेब से आखिरी पाँच का सिक्का निकाला और बच्चे की ओर बढ़ा दिया।

बच्चे की आँखें चमक उठीं, वह मुस्कुराया और बोला, “भैया, आपको भगवान जरूर नौकरी देंगे।”

रवि मुस्कुरा दिया। वह सिक्का शायद कोई नौकरी नहीं ला सका, लेकिन उस मासूम की बात ने रवि को फिर से कोशिश करने की हिम्मत दे दी।

संदेश:
"दूसरों की मदद करने से हौसला लौटता है, और हौसला ही सफलता की शुरुआत है।"

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