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WORLD ENVIRONMENT DAY SPECIAL : धरती माँ की पुकार

हरी-भरी थी मैं, फूलों से सजती,

नदी-झरनों की लहरों में मचलती।
पर अब धुएँ में घुटने लगी हूँ,
तुम्हारी लापरवाही से जलने लगी हूँ।

पेड़ जो थे मेरे आँचल के तारे,
एक-एक कर कट गए सारे।
मैं चीखी, चिल्लाई, पर तुम न माने,
भूल गए तुम, हम कितने थे दीवाने।

पंछी जो गाते थे रोज़ मेरे कानों में,
अब खो गए हैं शोर के तूफ़ानों में।
नदियाँ सूखीं, जंगल वीरान हुए,
धरती माँ के आँसू भी अब बेजान हुए।

एक दिन ऐसा ना हो जाए,
जब साँसें भी तुमसे रूठ जाएं।
अब भी समय है, चेत जाओ,
धरती को फिर से हरा बनाओ।

पेड़ लगाओ, जल बचाओ,
प्रकृति से प्रेम फिर निभाओ।
धरती मुस्काएगी, जीवन महकेगा,
हर आँगन फिर से हरियालेगा।

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