"हज़रत आला हज़रत: इमाम अहमद रज़ा ख़ान बरेलवी की ज़िंदगी और विरासत"

अहमद रज़ा ख़ान बरेलवी का पूरा नाम इमाम अहमद रज़ा ख़ान कादरी बरेलवी था. उनका जन्म14 जून 1856 को बरेली, उत्तर प्रदेश में हुआ. अहमद रज़ा ख़ान साहब भारत के सुप्रसिद्ध इस्लामी विद्वान, सूफ़ी संत, फकीह , कवि, लेखक और धार्मिक नेता थे। हज़रत आला हज़रत के नाम से भी प्रसिद्ध हैं। उन्होनें बरेलवी आंदोलन यानी सुन्नी इस्लाम की एक प्रमुख विचारधारा की स्थापना की। बरेलवी आंदोलन प्रेम, इबादत, रसूलुल्लाह की शान, दरूद शरीफ, और सूफी परंपराओं के लिए जाना जाता है। 28 अक्टूबर 1921 को 67 वर्ष की आयु में अहमद रज़ा ख़ान बरेलवी का निधन हो गया था.
अहमद रज़ा ख़ान बरेलवी 13 वर्ष की आयु में ही इस्लामी शिक्षा में माहिर हो गए। उनकी फ़िक़्ह, हदीस, तफ़सीर, कलाम, अरबी, फारसी, गणित, ज्योतिष आदि में गहरी पकड़ थी। वे अनेक भाषाओं में दक्षता थी।
उनकी प्रमुख रचनाओं में "फतावा रज़विया" हज़ारों फतवे, कुरआन की तफ़सीर , अनेक नात-ए-पाक और कविताएं शामिल हैं; उनकी प्रसिद्ध नात:
"मुस्तफा जाने रहमत पे लाखों सलाम"
— यह उनकी लिखी नात शरीफ दुनिया भर में पढ़ी जाती है।
इस नात का मुखड़ा इस प्रकार है:
मुस्तफा जाने रहमत पे लाखों सलाम
शम्अ-ए-बज़्म-ए-हिदायत पे लाखों सलाम।
इसके अंदर हर शेर में सैय्यदना रसूलुल्लाह की अज़मत, उनकी रहमत, और उनकी नबुव्वत के अनवार का बयान किया गया है।
इमाम अहमद रज़ा ख़ान बरेलवी की यह नात उर्दू, अरबी, फ़ारसी और कई भाषाओं में पढ़ी जाती है। इसकी मिठास, इश्क-ए-रसूल की खुशबू और अदब इसे हमेशा के लिए अमर कर देती है।
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