FATHER'S DAY SPECIAL : पिता का साया: धूप में जो छांव बन जाए, ठोकरों में राह दिखाए

पिता वो जड़ हैं, जिनसे हमारी पहचान की शाखाएं निकलती हैं। पिता की उंगली थामकर ही हमने चलना सीखा। पिता नाम है जिम्मेदारी का, प्यार का और छांव का। हर दर्द को खुद सहकर, मुस्कान देना पिता की फितरत है। पिता वो किताब हैं, जिससे हम जीवन भर सीखते हैं। आज दुनिया भर में "पिता दिवस" मनाया जा रहा है, इस दिवस के खास मौके पर आईये पढ़ते हैं पिता पर लिखी प्यारी सी ये कविता- "पिता का साया"
धूप में जो छांव बन जाए,
ठोकरों में राह दिखाए।
खुद की खुशियों को भूलकर,
हर कदम पर साथ निभाए।
सपनों को पंख जो देता है,
हर दर्द को खुद सह लेता है।
बिन कहे सब जान ले जो,
वो रिश्ता बस "पिता" है।
संघर्षों का वो समंदर है,
मुस्कान की वजह अंदर है।
हर दिन जो प्रेरणा दे जाए,
वो मेरे जीवन का ईश्वर है।
पिता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!
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