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"परिश्रम का फल"- बिना परिश्रम के जीवन सूना,सपनों का फिर क्या है दूना।

 

बिना परिश्रम के जीवन सूना,

सपनों का फिर क्या है दूना।

जो रोज़ जले हैं पसीने में,
वो चमके हैं फिर नगीने में।

धरती भी तब फसल उगाती,
जब हल उसकी छाती चीरता।
बिना कठिन परिश्रम के साथी,
कहाँ भाग्य का दीपक जलता?

सूरज भी हर दिन तपता है,
नदियाँ चट्टानों से लड़ती हैं।
पेड़ों की छाँव मिली जिसने,
जड़ें उसकी गहराई करती हैं।

जो थक कर भी रुकते नहीं,
वही इतिहास बनाते हैं।
परिश्रमी के कदमों के नीचे,
सपनों के फूल खिल जाते हैं।

तो चलो उठो, मत थक जाना,
संघर्षों से मत घबराना।
परिश्रम ही है सच्चा धन,
जो पाए वही है भाग्यवान।

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