लघु कथा: आखिरी सिक्का

रेलवे स्टेशन की एक बेंच पर एक बूढ़ा भिखारी बैठा था। उसकी आँखों में थकान थी, पर चेहरा शांत था। लोग आते-जाते रहे, कुछ ने सिक्का दिया, कुछ ने नजरअंदाज किया।
एक छोटा लड़का अपनी माँ के साथ आया और बगल में बैठ गया। उसने देखा कि भिखारी खाली कटोरे को निहार रहा था। लड़के ने जेब टटोली—बस एक ही सिक्का था।
माँ बोली, “वो आखिरी है, इससे हमें पानी लेना है।”
लड़के ने माँ की बात सुनी, पर फिर भी वह सिक्का निकालकर भिखारी के कटोरे में डाल दिया।
भिखारी की आँखें भर आईं। उसने लड़के की ओर देखा, मुस्कुराया, और धीरे से बोला, “बेटा, तुझमें ही भगवान है।”
माँ ने कोई शब्द नहीं कहा, पर उसकी आँखें लड़के पर गर्व से चमक उठीं।
संदेश: सच्ची दया और करुणा उम्र या धन की मोहताज नहीं होती।
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