लघु कथा: "एक तुलसी की भूल"

प्राचीन समय की बात है। एक गाँव में सावित्री नाम की एक भक्त महिला रहती थी। वह रोज़ सुबह उठकर शिव मंदिर जाती, शिवलिंग पर जल, दूध, फूल और तुलसी चढ़ाकर पूजा करती थी। उसका विश्वास था कि शिव भगवान उसकी हर मनोकामना पूर्ण करेंगे।
एक दिन गाँव में एक ज्ञानी साधु आए। उन्होंने देखा कि सावित्री शिवलिंग पर तुलसी दल चढ़ा रही है। वे मुस्कराए और बोले,
“बेटी, तुम्हारी श्रद्धा प्रशंसनीय है, लेकिन क्या तुम जानती हो कि तुलसी दल शिवलिंग पर चढ़ाना वर्जित है?”
सावित्री चौंक गई, “साधु महाराज, मैं तो वर्षों से यही करती आ रही हूँ!”
साधु बोले, “शिव और तुलसी की कथा बड़ी गहरी है। तुलसी देवी का विवाह शंखचूड़ राक्षस से हुआ था, जिसे शिव ने मारा था। इसलिए तुलसी को शिव पूजा में अर्पित नहीं किया जाता। यह नियम अनादि काल से चला आ रहा है।”
सावित्री ने हाथ जोड़कर क्षमा माँगी और उसी दिन से शुद्ध जल, बेलपत्र और धतूरा से शिव की पूजा करने लगी।
कुछ महीनों बाद उसकी वर्षों की संतान प्राप्ति की कामना पूरी हुई।
सीख :
पूजा में श्रद्धा जरूरी है, पर नियमों का ज्ञान उससे भी अधिक आवश्यक है। धर्म शुद्ध भावना और शुद्ध विधि दोनों से फल देता है।
No Previous Comments found.