लघु कथा: "चाय का कप"

 

एक वृद्ध प्रोफेसर अपने पुराने छात्रों से मिलने के लिए उन्हें अपने घर बुलाते हैं। सभी छात्र जीवन में सफल हो चुके होते हैं—कोई डॉक्टर, कोई इंजीनियर, कोई व्यवसायी। बातचीत के दौरान जीवन की भागदौड़, तनाव और परेशानियों पर चर्चा शुरू हो जाती है।

प्रोफेसर मुस्कुराते हुए चाय बनाने चले जाते हैं। थोड़ी देर बाद वे कई प्रकार के कपों के साथ लौटते हैं—कुछ कीमती चीनी मिट्टी के, कुछ कांच के, कुछ सादे और कुछ बहुत साधारण।

वे चाय सर्व करते हुए कहते हैं, "आप सबने सबसे अच्छे और सुंदर कप चुने हैं। लेकिन क्या आपने सोचा कि चाय सभी में एक ही है?"

छात्र चुप हो जाते हैं।

प्रोफेसर बोले, "जीवन चाय की तरह है, और कप हमारे बाहरी आवरण—जैसे पैसा, पद, प्रतिष्ठा। अगर हम सिर्फ कप की चिंता करते रहेंगे, तो जीवन की मिठास खो बैठेंगे।"

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