लघु कथा: मेहनत बेकार क्यों जाती है कभी-कभी?

गाँव के एक छोटे से किसान रामू ने अपने खेत में महीनों मेहनत की। उसने अच्छी खाद डाली, समय पर पानी दिया, हर रोज़ निराई-गुड़ाई की। उसे पूरा विश्वास था कि इस बार फसल जबरदस्त होगी।

कटाई का समय आया, लेकिन तभी एक भयंकर तूफान ने सब बर्बाद कर दिया। खड़ी फसल जमीन पर लेट गई, कुछ बह गई, और कुछ सड़ गई।

रामू हताश हो गया। गाँव के चौपाल पर जाकर बैठा और बोला,
"मैंने तो कोई कसर नहीं छोड़ी, फिर भी मेरी मेहनत बेकार चली गई। ये क्यों होता है?"

बूढ़े हरिया काका मुस्कराए और बोले,
"बेटा, मेहनत कभी बेकार नहीं जाती — कभी वो फल में दिखती है, और कभी सबक में। तू अब जानता है कि तूफान से पहले क्या उपाय करने चाहिए। अगली बार तू और भी समझदारी से खेती करेगा। मेहनत का फल हमेशा उसी रूप में नहीं मिलता, जैसा हम चाहते हैं।"

रामू थोड़ी देर चुप रहा, फिर धीरे से मुस्कराया।
अब उसे समझ आ गया था — मेहनत अगर आज रंग न लाई, तो कल रास्ता ज़रूर दिखाएगी।

निष्कर्ष:
मेहनत कभी-कभी बेकार इसलिए लगती है क्योंकि परिणाम हमारे अनुसार नहीं आते, लेकिन हर अनुभव कुछ सिखा जाता है। और यही सीख आगे की सफलता की नींव बनती है।

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