MONSOON SPECIAL: "बारिश में जब हो उसका इंतज़ार"

बारिश की वो पहली बूँद जब ज़मीन को छूती है, तो एक ख़ुशबू उठती है — मिट्टी की, यादों की, और शायद उस शख़्स की भी, जिसे हम हर बूँद में ढूँढते हैं।
उस दिन बादल ज़रा ज़्यादा रुके हुए थे, जैसे आसमान भी किसी का इंतज़ार कर रहा हो। मैं खिड़की के पास बैठा था, गर्म चाय का कप हाथ में, और दिल में बस एक ही नाम... वो।
बारिश की हर बूँद जैसे दिल पर दस्तक दे रही थी — “क्या वो आएगी आज?”
हर बूँद की थपकियों में जैसे एक पुकार छिपी थी, एक उम्मीद की फुसफुसाहट।
पत्तों से गिरती बूंदें, यूँ लग रही थीं जैसे मेरी बेचैनी को गिन रही हों।
जब आप किसी का इंतज़ार बारिश में करते हैं, तो मौसम महज़ मौसम नहीं रहता।
वो एक कविता बन जाता है — अधूरी, भीगी, और बहुत ही निजी।
हर भीगी सड़क पर उसका अक्स दिखाई देता है।
जैसे वो अभी आई थी, बस थोड़ी देर पहले।
या शायद आने ही वाली है… अगली बूँद के साथ।
कभी लगता है — क्या वो भी मेरे बारे में सोच रही होगी?
क्या उसके भी दिल में कोई बारिश उतर रही होगी?
इंतज़ार की ये बारिश कभी तेज़ हो जाती है, कभी धीमी।
मगर दिल में जो तूफ़ान है, वो थमता नहीं।
और फिर…
अगर वो सच में आ जाए,
तो उस भीगते हुए लम्हे में वक़्त ठहर सा जाता है।
बारिश, इंतज़ार और वो —
इन तीनों का संगम ही तो है प्रेम का सबसे सुंदर रूप।
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