GURU PURNIMA SPECIAL: लघु कथा: "अंधेरे का दीपक"

गाँव के एक कोने में रहने वाला एक गरीब लड़का था — नाम था आरव। वह पढ़ने में तेज़ था, लेकिन घर की स्थिति इतनी खराब थी कि किताबें खरीदना भी मुश्किल था। स्कूल में उसका ध्यान बस एक बात पर था — "सीखना"।
एक दिन गाँव में एक बुजुर्ग आए। लाठी पकड़े, सफेद दाढ़ी, आँखों में चमक। वे गाँव में लोगों को पढ़ा रहे थे — मुफ्त में। उनका नाम कोई नहीं जानता था, लोग उन्हें बस "गुरुजी" कहते थे।
आरव रोज़ स्कूल के बाद गुरुजी के पास जाता और चुपचाप बैठकर उनकी बातें सुनता। धीरे-धीरे गुरुजी ने उसे पढ़ाना शुरू किया — न केवल किताबों से, बल्कि ज़िंदगी के पाठ भी।
गुरुजी कहते,"ज्ञान वो दीपक है जो अंधेरे को नहीं, अंधेरे के डर को मिटाता है।"
वर्षों बीते। आरव ने शहर जाकर पढ़ाई की, और एक दिन वही गाँव का लड़का IAS अधिकारी बनकर लौटा। उसने गाँव में एक स्कूल खुलवाया — नाम रखा:
"गुरुजी विद्यालय"।
लोगों ने पूछा, “गुरुजी तो अब इस दुनिया में नहीं हैं, तो उनके नाम पर क्यों?”
आरव मुस्कुराया और बोला:
"जो अंधेरे में दीपक जलाए, वह सिर्फ नाम नहीं — जीवन भर की रोशनी होता है।"
शिक्षा:
गुरु वही होता है जो ज्ञान ही नहीं, जीवन जीने का तरीका सिखा दे।
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