सावन (प्रकृति की संगीतमय कविता) — सुमित्रानंदन पंत

सुमित्रानंदन पंत हिंदी साहित्य के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक माने जाते हैं, (अन्य तीन: जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला')।उनकी रचनाओं में प्रकृति-सौंदर्य, मानवीय भावनाएँ, और संगीतात्मकता प्रमुख होती है।

यह कविता सावन और वर्षा ऋतु के सौंदर्य को अत्यंत संगीतात्मक और चित्रमय शैली में प्रस्तुत करती है, जो पंत की विशेषता है। शब्दों में जो ध्वनि (जैसे झम-झम, टप-टप, छम-छम) है, वह पंत की कविता का विशिष्ट लक्षण है।यह रचना पंत की प्रकृति-प्रधान कविताओं के अंतर्गत आती है, और उनके प्रारंभिक छायावादी काल की शैली को दर्शाती है। 

आईये पढ़ते हैं, सावन को सुमित्रानंदन पंत की कविता-  "सावन"

झम झम झम झम मेघ बरसते हैं सावन के
छम छम छम गिरतीं बूँदें तरुओं से छन के।
चम चम बिजली चमक रही रे उर में घन के,
थम थम दिन के तम में सपने जगते मन के।

ऐसे पागल बादल बरसे नहीं धरा पर,
जल फुहार बौछारें धारें गिरतीं झर झर।
आँधी हर हर करती, दल मर्मर तरु चर् चर् 
दिन रजनी औ पाख बिना तारे शशि दिनकर।

पंखों से रे, फैले फैले ताड़ों के दल,
लंबी लंबी अंगुलियाँ हैं चौड़े करतल।
तड़ तड़ पड़ती धार वारि की उन पर चंचल
टप टप झरतीं कर मुख से जल बूँदें झलमल।
नाच रहे पागल हो ताली दे दे चल दल,
झूम झूम सिर नीम हिलातीं सुख से विह्वल।
हरसिंगार झरते, बेला कलि बढ़ती पल पल
हँसमुख हरियाली में खग कुल गाते मंगल?

दादुर टर टर करते, झिल्ली बजती झन झन
म्याँउ म्याँउ रे मोर, पीउ पिउ चातक के गण !
उड़ते सोन बलाक आर्द्र सुख से कर क्रंदन,
घुमड़ घुमड़ घिर मेघ गगन में करते गर्जन।
वर्षा के प्रिय स्वर उर में बुनते सम्मोहन
प्रणयातुर शत कीट विहग करते सुख गायन।
मेघों का कोमल तम श्यामल तरुओं से छन।
मन में भू की अलस लालसा भरता गोपन।

रिमझिम रिमझिम क्या कुछ कहते बूँदों के स्वर,
रोम सिहर उठते छूते वे भीतर अंतर!
धाराओं पर धाराएँ झरतीं धरती पर,
रज के कण कण में तृण तृण की पुलकावलि भर।

पकड़ वारि की धार झूलता है मेरा मन,
आओ रे सब मुझे घेर कर गाओ सावन !
इन्द्रधनुष के झूले में झूलें मिल सब जन,
फिर फिर आए जीवन में सावन मन भावन !

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