"जगदीश चंद्र माथुर का ‘कोणार्क’: एक सांस्कृतिक महायात्रा"

जगदीश चंद्र माथुर हिंदी साहित्य के एक प्रसिद्ध नाटककार, लेखक, अनुवादक और दूरदर्शी विचारक थे। उन्होंने हिंदी रंगमंच और साहित्य को एक नई दिशा दी, खासकर सामाजिक और सांस्कृतिक मुद्दों को लेकर।उनका जन्म16 जुलाई 1917, उत्तर प्रदेश (महोबा ज़िले में) हुआ था और निधन 14 मई 1978 को हुआ था. 

जगदीश चंद्र माथुर की भाषा शैली सहज, सरल और व्यंग्यात्मक है, खासकर उनके एकांकी "रीढ़ की हड्डी" में। उन्होंने अपनी भाषा में पात्रों के अनुसार विभिन्न भाषाओं के शब्दों का प्रयोग किया है, जिससे उनकी रचनाओं में एक वास्तविक अनुभूति होती है। 

जगदीश चंद्र माथुर ने कई प्रभावशाली नाटक और निबंध लिखे जो आज भी साहित्यिक जगत में आदर से पढ़े जाते हैं। उनके कुछ प्रसिद्ध नाटक हैं:

कोणार्क – यह उनका सबसे प्रसिद्ध नाटक है, जो ओड़िशा के सूर्य मंदिर की पृष्ठभूमि पर आधारित है। इसमें कला, संस्कृति और समाज के गहरे द्वंद्व को दर्शाया गया है।

पहला राजा – यह नाटक लोकतंत्र और सत्ता के प्रारंभिक स्वरूपों पर आधारित है।

ओर-नीर – यह भी एक चर्चित नाटक है जिसमें ग्रामीण जीवन की समस्याओं को चित्रित किया गया है।

उनके अन्य योगदान की बात करें तो- वे युनेस्को से भी जुड़े रहे और भारतीय संस्कृति को अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रस्तुत करने का महत्वपूर्ण कार्य किया। इसके अलावा उन्होंने ग्रामीण भारत की शिक्षा और संचार प्रणाली पर भी गहरा काम किया, विशेषकर लोकमंच और रेडियो नाटकों के माध्यम से।

शैली और विशेषता:

  • उनके नाटकों की भाषा बेहद सजीव और सहज होती थी।
  • इतिहास, लोककथाओं और समकालीन समस्याओं का सुंदर समन्वय उनके लेखन की विशेषता थी।
  • उन्होंने नाट्यकला को सिर्फ मनोरंजन का माध्यम न मानकर सामाजिक बदलाव का औजार भी माना।

पेश है जगदीश चंद्र माथुर के सबसे प्रसिद्ध नाटक "कोणार्क" की संक्षिप्त समीक्षा और विश्लेषण - 

"कोणार्क" नाटक ओड़िशा के प्रसिद्ध सूर्य मंदिर की पृष्ठभूमि पर आधारित है। इसमें मुख्य रूप से उस शिल्पी की कथा है जो मंदिर की मूर्तियों और वास्तुकला को साकार करता है। यह नाटक एक अद्वितीय कला साधना, समर्पण, त्याग, और संघर्ष की कहानी कहता है।

मुख्य पात्र शिल्पी विषु है, जो कोणार्क मंदिर के निर्माण में रत है। लेकिन जब उसे ज्ञात होता है कि राजा और पुजारीगण उसके बनाए मंदिर को अधूरा छोड़ना चाहते हैं, तो वह भीतर से टूट जाता है। विषु अंत में अपने प्राण देकर मंदिर की महत्ता और पूर्णता सुनिश्चित करता है।

मुख्य विषयवस्तु / थीम:

  • कला बनाम सत्ता: यह नाटक दर्शाता है कि एक सच्चा कलाकार सत्ता या धार्मिक दबावों से ऊपर होता है।
  • आस्था और संघर्ष: विषु के चरित्र के माध्यम से बताया गया है कि सच्चा विश्वास किस तरह आत्म-बलिदान में बदल सकता है।
  • धर्म और राजनीति की सांठगांठ: पुजारी और राजा का गठबंधन मंदिर के निर्माण को रोक देता है, यह संकेत करता है कि कैसे राजनीति और धर्म मिलकर कला और सच्चाई को बाधित करते हैं।

निष्कर्ष:
"कोणार्क" नाटक न केवल इतिहास का पुनर्निर्माण है, बल्कि आज की दुनिया को यह संदेश देता है कि जब तक कला और समर्पण जीवित हैं, तब तक समाज जीवित है। यह नाटक भारतीय रंगमंच और हिंदी साहित्य में एक मील का पत्थर है।

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