"बस्ती से भारत तक: माहेश्वर तिवारी का कवि-प्रवास"

'माहेश्वर तिवारी' हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि, गीतकार और जनकवि के रूप में व्यापक रूप से जाने जाते हैं। उनका जन्म 22 जुलाई 1939 को बस्ती, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उन्होंने हिन्दी काव्य-जगत में विशेष रूप से गीत विधा को नई पहचान दी। उनकी कविताएँ आम आदमी की ज़िंदगी, संघर्ष, प्रेम, संवेदना और सामाजिक सरोकारों की सच्ची अभिव्यक्ति रही हैं।

उनकी प्रमुख रचनाओं में समर शेष है, जुलूस का आदमी,गीत मेरे संग चलें,अभी कुछ और,हम बचे रहें. जो शेष है वही सत्य है- शामिल है. 

हिन्दी साहित्य में योगदान के लिए उन्हें विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं और मंचों द्वारा सम्मानित किया गया।वे एक जनपक्षधर कवि माने जाते हैं, जिन्होंने कविताओं के माध्यम से समाज के लिए एक जागरूकता का वातावरण निर्मित किया। पेश है माहेश्वर तिवारी की मशहूर रचना- एक तुम्हारा होना क्या से क्या कर देता है

एक तुम्हारा होना
         क्या से क्या कर देता है,
बेजुबान छत दीवारों को
         घर कर देता है ।

ख़ाली शब्दों में
         आता है
ऐसे अर्थ पिरोना
गीत बन गया-सा
         लगता है
घर का कोना-कोना

एक तुम्हारा होना
        सपनों को स्वर देता है ।
आरोहों-अवरोहों
         से
समझाने लगती हैं
तुमसे जुड़ कर
        चीज़ें भी
बतियाने लगती हैं

एक तुम्हारा होना
       अपनापन भर देता है ।

 

 

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