लघु कथा : “पाँच मिनट”

रविवार की सुबह थी। घड़ी की सुइयाँ सात बजा रही थीं, लेकिन 16 साल का आर्यन अब भी बिस्तर में था। माँ ने रसोई से आवाज़ लगाई, “आर्यन, उठ जाओ बेटा, आज तुम्हारी कोचिंग टेस्ट है।”

आर्यन ने करवट बदलते हुए कहा, “माँ… बस पाँच मिनट और।”

माँ मुस्कराई। “पाँच मिनट ही तो चाहिए तुम्हें हर बार।”
वो जानती थी कि ये 'पाँच मिनट' अक्सर आधे घंटे में बदल जाते हैं।

आख़िरकार आर्यन उठा, जल्दी-जल्दी तैयार हुआ और साइकल लेकर निकल पड़ा। रास्ते में ट्रैफ़िक थोड़ा ज्यादा था, वो घबरा गया। जब कोचिंग सेंटर पहुँचा, घड़ी ठीक 8:01 दिखा रही थी। गेट बंद हो चुका था।

"सर, बस एक मिनट लेट हुआ हूँ!"
गेट पर खड़े गार्ड ने नज़रें उठाकर कहा, “नियम है बेटा, 8 बजे के बाद किसी को एंट्री नहीं।”

आर्यन का दिल बैठ गया। ये टेस्ट बहुत महत्वपूर्ण था—इसका परिणाम ही उसकी स्कॉलरशिप तय करने वाला था।

वो भारी कदमों से घर लौटा। माँ ने दरवाज़ा खोला। वो कुछ समझ गईं।

"क्या हुआ?"
आर्यन की आँखें भर आईं। "माँ, मैंने सिर्फ पाँच मिनट गंवाए... और बहुत कुछ हार गया।"

माँ ने प्यार से सिर सहलाया। "बेटा, ज़िंदगी में सबसे कीमती चीज़ अगर कोई है तो वो है 'समय'। ये वापस नहीं आता। जो लोग इसे समझते हैं, वही आगे बढ़ते हैं।"

उस दिन के बाद से आर्यन की आदत बदल गई। अब वो हर जगह पाँच मिनट पहले पहुँचना सीख गया।

वर्षों बाद, जब वो एक सफल वैज्ञानिक बना और मंच पर बोल रहा था, तो उसने अपनी सफलता का राज बस एक पंक्ति में बताया:

"मैंने समय की क़ीमत 'पाँच मिनट' में सीख ली थी।"

सीख:
छोटे से दिखने वाले ‘पाँच मिनट’ कभी-कभी ज़िंदगी की सबसे बड़ी सीख दे जाते हैं।

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