लघु कथा: "राखी का वचन"

गाँव के छोटे से घर में रहने वाले अंशु और उसकी छोटी बहन पायल बचपन से एक-दूसरे के बिना अधूरे थे। पायल हर साल राखी पर अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती और मुस्कुराकर कहती, "भैया, मुझे तुमसे बस एक ही तोहफा चाहिए—तुम हमेशा मेरे साथ रहना।"
समय के साथ अंशु पढ़ाई के लिए शहर चला गया। पायल की शादी भी पास के गाँव में हो गई। रक्षाबंधन के त्योहार पर दोनों की व्यस्तताएँ बढ़ गईं, लेकिन पायल हर साल राखी भेजना नहीं भूलती थी। अंशु भी डाक से तोहफा भेज देता, पर मिलने का समय नहीं निकाल पाता।
एक साल, पायल ने राखी भेजने के साथ एक चिट्ठी भी भेजी—"भैया, इस बार तोहफा मत भेजना, बस खुद आ जाना। इस राखी पर तुम्हारी कलाई पर राखी बाँधने का मन है।"
अंशु ने ऑफिस की व्यस्तता में वो चिट्ठी पढ़ी तो उसकी आँखें नम हो गईं। वह समझ गया कि बहन के लिए उसकी मौजूदगी ही सबसे बड़ा तोहफा है।
रक्षाबंधन के दिन पायल अपने दरवाजे पर अंशु को देखकर हैरान रह गई। उसकी आँखों में खुशी के आँसू थे। अंशु ने मुस्कुराकर कहा, "इस बार तेरे वचन को निभाने आया हूँ, बहन। तेरे साथ हमेशा रहूँगा।"
राखी के धागे में इस बार एक और वादा जुड़ गया था—रिश्तों में वक्त की मौजूदगी का वादा।
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