"गुलज़ार: शब्दों का जादूगर और भावनाओं का शिल्पी"

गुलज़ार (पूरा नाम: संपूर्ण सिंह कालरा) का जन्म 18 अगस्त 1934 को झेलम ज़िले (अब पाकिस्तान में) में हुआ था। वे हिंदी फिल्म जगत के मशहूर गीतकार, लेखक, कवि, पटकथा लेखक और फिल्म निर्देशक हैं।

उनकी खासियत है साधारण शब्दों में गहरी भावनाओं को पिरो देना। उन्होंने कई मशहूर गीत, कविताएँ और कहानियाँ लिखी हैं। उन्हें पद्म भूषण, साहित्य अकादमी पुरस्कार, दादा साहेब फाल्के पुरस्कार और ऑस्कर व ग्रैमी अवॉर्ड भी मिल चुके हैं।

गुलज़ार साहब की रचनाएँ और उपलब्धियाँ भारतीय साहित्य और सिनेमा दोनों में बेहद अहम मानी जाती हैं।उनकी कविताओं में आम इंसान की ज़िंदगी, रिश्तों की नज़ाकत और प्रकृति की गहराई झलकती है।

करियर की शुरुआत

1963 में फिल्म “बंदिनी” के गीत “मोरा गोरा अंग लै ले” (संगीत: एस.डी. बर्मन, गायक: लता मंगेशकर) से बतौर गीतकार उन्होंने अपना सफ़र शुरू किया।इसके बाद उन्होंने गीत लेखन के साथ-साथ पटकथा लेखन और निर्देशन में भी अपनी पहचान बनाई।

प्रमुख काव्य-संग्रह: रावी पार, पुखराज, चिराग़, राज़, दूधिया इत्यादि।

कहानियाँ और नज़्में
लघुकथा संग्रह: धुआँ, कहानियाँ, रावी पार।
उनकी नज़्मों में रोज़मर्रा की चीज़ों से गहरी भावनाओं का चित्रण होता है।

फ़िल्मी गीत

“तेरे बिना ज़िंदगी से कोई शिकवा नहीं”,
“दिल ढूँढता है”,
“आने वाला पल जाने वाला है”
जैसे अनगिनत गीत आज भी अमर हैं।

फ़िल्म निर्देशन और पटकथा

मेरे अपने, आंधी, मौसम, किताब, इजाज़त जैसी फ़िल्मों का निर्देशन किया।कई फिल्मों के लिए पटकथाएँ और संवाद लिखे।

गुलज़ार की उपलब्धियाँ

  • राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सम्मान
  • पद्म भूषण (2004)
  • साहित्य अकादमी पुरस्कार (2002, दिल्ली टोपी)
  • दादा साहेब फाल्के पुरस्कार (2013)
  • ऑस्कर अवॉर्ड (2009, गीत जय हो, फ़िल्म Slumdog Millionaire)
  • ग्रैमी अवॉर्ड (2010, उसी गीत के लिए)

गुलज़ार की खासियत है — वे अपनी रचनाओं में रोज़मर्रा के जीवन की सादगी और गहरी भावनाओं को बेहद खूबसूरती से व्यक्त करते हैं।गुलज़ार आज भी अपनी लेखनी और गीतों के ज़रिए पीढ़ियों को जोड़ते हैं।

Leave a Reply



comments

Loading.....
  • No Previous Comments found.