दुष्यंत कुमार: आधुनिक हिंदी कविता के स्वर

दुष्यंत कुमार का जन्म 27 सितंबर 1931 को उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के राजपुर नवादा गाँव में हुआ था। वे आधुनिक हिंदी कविता के ऐसे कवि थे जिन्होंने सरल भाषा में समाज और राजनीति के गहरे सच को व्यक्त किया। उनकी रचनाएँ न केवल साहित्यिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि सामाजिक जागरूकता का संदेश भी देती हैं।
पेश है दुष्यंत कुमार की रचना - ये सारा जिस्म झुककर बोझ से दुहरा हुआ होगा- दुष्यंत कुमार
ये सारा जिस्म झुककर बोझ से दुहरा हुआ होगा,
मैं सजदे में नहीं था, आपको धोखा हुआ होगा।
यहाँ तक आते-आते सूख जाती हैं कई नदियाँ,
मुझे मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा।
ग़ज़ब ये है कि अपनी मौत की आहट नहीं सुनते,
वो सब-के-सब परीशाँ हैं वहाँ पर क्या हुआ होगा।
तुम्हारे शहर में ये शोर सुन-सुनकर तो लगता है,
कि इंसानों के जंगल में कोई हाँका हुआ होगा।
कई फ़ाक़े बिताकर मर गया, जो उसके बारे में,
वो सब कहते हैं अब, ऐसा नहीं, ऐसा हुआ होगा।
यहाँ तो सिर्फ़ गूँगे और बहरे लोग बसते हैं,
ख़ुदा जाने यहाँ पर किस तरह जलसा हुआ होगा।
चलो, अब यादगारों की अँधेरी कठोरी खोलें,
कम-अज़-कम एक वो चेहरा तो पहचाना हुआ होगा।
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