दो पैसे का सबक – एक सीख देने वाली लघु कथा

जीवन की असली शिक्षा हमेशा बड़ी-बड़ी किताबों या भारी-भरकम व्याख्यानों से नहीं मिलती, बल्कि अक्सर छोटी-सी घटना ही हमें गहरा सबक दे जाती है। “दो पैसे का सबक” ऐसी ही एक लघु कथा है, जो पाठक के दिल को छू लेती है और सोचने पर मजबूर करती है।

कहानी में छोटा-सा बच्चा रवि रोज़ रास्ते में बैठी बूढ़ी अम्मा को देखता है। एक दिन वह उन्हें अपने टिफ़िन से आधा समोसा देता है। अम्मा मुस्कुराकर समझाती हैं कि “देने से जेब छोटी नहीं होती, दिल बड़ा होता है।” अगले दिन जब रवि उन्हें पैसे देना चाहता है, तो अम्मा पैसे लेने से इंकार कर देती हैं और कहती हैं—“बेटा, मुझे पैसों की भूख नहीं है, मुझे तो सिर्फ़ अपनापन चाहिए।”

यही इस कहानी का सार है। समाज में हम अक्सर यह सोचते हैं कि ज़रूरतमंदों को केवल पैसे या वस्तुएँ देकर ही मदद की जा सकती है। परंतु असलियत यह है कि इंसान को रोटी या सिक्कों से ज़्यादा एक मुस्कान, एक स्नेहभरा शब्द और दिल से दिया हुआ अपनापन चाहिए। यही वह अमूल्य चीज़ है, जो किसी भी इंसान की जिंदगी को संवार सकती है।

“दो पैसे का सबक” हमें यह एहसास कराता है कि सच्ची इंसानियत सिर्फ़ देने में नहीं, बल्कि साझा करने और जोड़ने में है। यह कथा बच्चों को करुणा और संवेदनशीलता का मूल्य सिखाती है और बड़ों को याद दिलाती है कि जीवन की सबसे बड़ी संपत्ति हमारा मानवीय व्यवहार है।

 

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