कविता- "किस्मत की डोर"

कभी चमकती है जैसे सुबह की धूप,
कभी ढलती है जैसे शाम की धूप।
कदमों में बिछी है अनकही राहें,
कभी मिलती है खुशियाँ, कभी हैं आहें।
किस्मत की डोर है अजीब सा खेल,
कभी खिलाती है, कभी देती है मेल।
पर जो चले दिल में भरोसा रखकर,
वही पाए जीवन का सच्चा सुख हर।
किस्मत पर मत छोड़ सब अपने कर्म,
हर पल संजोओ जैसे हो अंतिम पर्व।
क्योंकि मेहनत और भरोसा साथ हो जब,
किस्मत भी मुस्काए, राहें हों सब सजीव।
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