इश्क़ में ‘रेफ़री’ नहीं होता!- गुलज़ार

इश्क़ में ‘रेफ़री’ नहीं होता

‘फ़ाउल’ होते हैं बेशुमार मगर

‘पेनल्टी कॉर्नर’ नहीं मिलता!
दोनों टीमें जुनूँ में दौड़ती, दौड़ाए रहती हैं

छीना-झपटी भी, धौल-धप्पा भी
बात बात पे ‘फ़्री किक’ भी मार लेते हैं

और दोनों ही ‘गोल’ करते हैं!
इश्क़ में जो भी हो वो जाईज़ है

इश्क़ में ‘रेफ़री’ नहीं होता!

-गुलज़ार

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