पाखंडी लोग: एक कविता ये भी

चेहरे पर मासूमियत, दिल में छलावा,

जैसे मीठी बातें करें, पर अंदर जहर खावा।

राम का नाम जपें, पर कर्म रावण जैसे,
मुँह में भक्ति, दिल में बस अपने फायदे।

धर्म के ठेकेदार, लोग मंच पर महान,
पीछे वही फंदे, जो दिखें न किसी इंसान।

कबूतर जैसे उड़ते, हर तरफ़ बारीक नज़रे,
सच बोले कोई, तो मुंह बना लेते कड़े।

मंदिर जाएँ रोज़, लेकिन मन चोर बाजार का,
सच कहो तो बोले – “तुम्हें क्या मतलब यार का?”

ऐसे लोग देखो, नकली मुस्कान के पीछे,
हर दया और भलाई, बस अपने लिए पीछे।

दुनिया कहे “भला आदमी”, वो मुस्काए बड़े,
पर भीतर से तो, बस पाखंड ही उनके पड़े।

 

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