“साहिर — शायरी में दर्द का सौंदर्य”
साहिर लुधियानवी की शायरी का दायरा बेहद विशाल है —वो सिर्फ़ मोहब्बत के शायर नहीं थे, बल्कि समाज, इंसानियत और ज़मीर की आवाज़ थे। उनकी कलम में इश्क़ की नर्मी भी थी और हक़ीक़त की तीखी सच्चाई भी।साहिर ने लिखा तो ऐसा लिखा कि हर शेर एक आईना बन गया — जिसमें हम अपने ही ज़माने को देख सकते हैं। पेश है साहिर लुधियानवी की शायरी-
ग़म और ख़ुशी में फ़र्क़ न महसूस हो जहाँ
मैं दिल को उस मक़ाम पे लाता चला गया
वो अफ़्साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन
उसे इक ख़ूब-सूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा
आप दौलत के तराज़ू में दिलों को तौलें
हम मोहब्बत से मोहब्बत का सिला देते हैं
कौन रोता है किसी और की ख़ातिर ऐ दोस्त
सब को अपनी ही किसी बात पे रोना आया
ले दे के अपने पास फ़क़त इक नज़र तो है
क्यूँ देखें ज़िंदगी को किसी की नज़र से हम
बर्बादियों का सोग मनाना फ़ुज़ूल था
बर्बादियों का जश्न मनाता चला गया
हम ग़म-ज़दा हैं लाएँ कहाँ से ख़ुशी के गीत
देंगे वही जो पाएँगे इस ज़िंदगी से हम
लो आज हम ने तोड़ दिया रिश्ता-ए-उमीद
लो अब कभी गिला न करेंगे किसी से हम
संसार की हर शय का इतना ही फ़साना है
इक धुँद से आना है इक धुँद में जाना है
ज़मीं ने ख़ून उगला आसमाँ ने आग बरसाई
जब इंसानों के दिल बदले तो इंसानों पे क्या गुज़री
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