लघु कथा: छोटा काम, बड़ा सबक

रमेश एक बड़ी कंपनी में ऑफिस असिस्टेंट था। अच्छे कपड़े, घड़ी, और ऊँची कुर्सी देखकर उसे अपने ऊपर बड़ा गर्व था। वह हमेशा सफाईकर्मी रामू को नीची निगाहों से देखता था। जब भी रामू झाड़ू लगाता या डस्टबिन साफ करता, रमेश कह देता —

“अरे रामू, ज़रा जल्दी कर! पूरे दिन यही काम करते रहते हो, कुछ और सीखा नहीं ज़िंदगी में?”
रामू बस मुस्कुराकर चुप रह जाता।

एक दिन अचानक रामू बीमार हो गया और ऑफिस नहीं आया। सुबह-सुबह बॉस ने मीटिंग रखी थी, लेकिन फर्श पर कचरा बिखरा पड़ा था, टेबल पर धूल जमी थी। बॉस ने गुस्से में कहा,
“ऑफिस साफ-सुथरा नहीं होगा तो मीटिंग नहीं होगी। कोई इसे साफ करे।”

सभी कर्मचारी एक-दूसरे का मुँह देखने लगे। रमेश ने मन ही मन सोचा — “मैं मैनेजर का असिस्टेंट हूँ, ये मेरा काम नहीं।”
लेकिन बॉस की नज़रों के डर से उसने झाड़ू उठा ली।

पहली बार उसने झुककर झाड़ू लगाई। पाँच मिनट में ही पसीना आने लगा, कमर में दर्द हुआ, और धूल से खाँसी आने लगी। तभी उसे एहसास हुआ कि ये “आसान” दिखने वाला काम कितना मुश्किल है।

जब सफाई पूरी हुई, तो बॉस ने कहा, “आज रमेश ने वो काम किया, जिसे हम सब छोटा समझते थे, लेकिन वही काम सबसे ज़रूरी था।”

रमेश चुपचाप अपनी कुर्सी पर बैठ गया। उसी शाम उसने रामू को फोन किया —
“रामू भाई, जल्दी ठीक हो जाओ। आज तुम्हारा काम करके समझ आया — हर काम छोटा नहीं होता, बस नज़रिया छोटा होता है।”

रामू हँस पड़ा, और बोला —
“साहब, अब आपने बड़ा सबक सीख लिया।”

सीख :
कोई भी काम छोटा नहीं होता। हर काम की अपनी गरिमा और मेहनत होती है। सम्मान हमेशा इंसान को उसके व्यवहार से मिलता है, पद या काम से नहीं।

 

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