लघु कथा – “स्पर्श की गर्माहट”
सर्दियों की ठिठुरती सुबह थी। कोहरा इतना घना था कि सड़क पर चलते हुए भी कुछ दिखाई नहीं दे रहा था।नीलम कॉलेज जाने के लिए जल्दी घर से निकली थी। बस स्टॉप पर पहुँचते ही उसने देखा कि एक छोटा बच्चा ठंडी ज़मीन पर बैठा काँप रहा था। उसके शरीर पर फटे पुराने कपड़े थे, और पैरों में चप्पल तक नहीं थी।
नीलम को एक पल को देर लगी, पर फिर उसने अपना दुपट्टा उतारकर उस बच्चे के कंधों पर डाल दिया। बच्चे की आँखों में चमक आ गई।
नीलम ने पास की दुकान से एक बन और दूध खरीदा और बच्चे को देते हुए मुस्कुराई। बच्चा बोला, “दीदी, आप भगवान हैं क्या?”
नीलम के होंठों पर मुस्कान आई, उसने बस इतना कहा, “नहीं, मैं भी तुम्हारी तरह इंसान हूँ — बस थोड़ा सा समय और स्नेह दे रही हूँ।”
बस आ चुकी थी। नीलम चढ़ने लगी तो बच्चे ने धीरे से कहा, “दीदी, आपका ये स्पर्श मैं कभी नहीं भूलूँगा।”
नीलम का दिल भीग गया — उसे महसूस हुआ कि इंसानियत का एक सच्चा स्पर्श न केवल किसी और का जीवन बदलता है, बल्कि अपने भीतर भी गर्माहट भर देता है।


No Previous Comments found.