लघु कथा: नए साल का इंतज़ार

सर्दियों की वह रात कुछ ज़्यादा ही खामोश थी। दीवार पर टंगा कैलेंडर अपनी आख़िरी तारीख़ पर आकर ठहर गया था। घड़ी की टिक-टिक के साथ आरव का दिल भी धड़क रहा था। वह खिड़की के पास बैठा बाहर जगमगाती रोशनियाँ देख रहा था—हर तरफ़ नए साल की तैयारियाँ थीं, मगर उसके मन में अजीब-सी बेचैनी थी।

पिछला साल उसके लिए सीखों से भरा रहा था। कुछ सपने पूरे हुए, तो कुछ अधूरे ही रह गए। उसने कई बार हार मानी, कई बार खुद पर शक किया। दोस्त आगे बढ़ गए थे और वह वहीं खड़ा लग रहा था। नए साल का इंतज़ार उसे उत्साह नहीं, बल्कि आत्ममंथन दे रहा था।

टेबल पर रखी डायरी उसने धीरे से खोली। पुराने पन्नों में असफलताओं के निशान थे, पर बीच-बीच में छोटी-छोटी जीतें भी चमक रही थीं। उसने एक नया पन्ना खोला और लिखा—
“मैं परफेक्ट नहीं हूँ, लेकिन कोशिश करना मैंने नहीं छोड़ा।”

जैसे ही घड़ी ने बारह बजाए, आसमान में आतिशबाज़ी छा गई। शोर के बीच आरव ने गहरी साँस ली। उसे एहसास हुआ कि नया साल कोई जादू नहीं करता, मगर नई शुरुआत का मौका ज़रूर देता है। उसने डायरी में आख़िरी पंक्ति लिखी—
“इस नए साल में मैं खुद पर भरोसा रखूँगा और हर दिन को बेहतर बनाने की कोशिश करूँगा।”

खिड़की से बाहर देखते हुए आरव मुस्कुराया। नया साल आ चुका था, और उसके साथ उम्मीद भी।

सीख:
नया साल सिर्फ तारीख़ बदलने का नाम नहीं है, बल्कि खुद को समझने, अपनी गलतियों से सीखने और नए आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ने का अवसर है।

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