कविता - “दिसंबर की गोद में क्रिसमस”

दिसंबर आया, ठंडक लाया,

कोहरे की चादर ओढ़े सवेरे।
धूप भी जैसे मुस्कुरा कर,
धीरे-धीरे उतरे डेरे।

हवा में घुली अलसाई सी मिठास,
चाय की भाप, स्वेटर की गर्माहट।
सड़कों पर चलती हल्की रौनक,
हर चेहरे पर सुकून की आहट।

पेड़ों की डालियों पर ओस चमके,
तारों से बातें करता आसमान।
साल का आख़िरी महीना बनकर,
दिसंबर सिखाता ठहरना इंसान।

फिर आता है क्रिसमस का दिन,
घंटियों की गूंज, प्रार्थना का स्वर।
प्रेम, दया और भाईचारे से,
भर जाता है हर एक घर।

रंग-बिरंगी रोशनी से सजे हैं पेड़,
खिड़कियों में सपनों की झिलमिल।
बच्चों की आँखों में चमक लिए,
सांता आता हँसी में शामिल।

केक की खुशबू, गीतों की धुन,
मिलकर मनाते सब त्योहार।
अमीर-गरीब का भेद मिटे,
जब बाँटा जाए थोड़ा-सा प्यार।

क्रिसमस याद दिलाता है हमको,
देना ही सबसे बड़ा उपहार।
किसी की उदासी हर लेना,
यही है जीवन का सार।

दिसंबर पूछे बीते कल से,
क्या सीखा, क्या पाया तुमने?
और आने वाले नए सवेरों से,
कौन-सा सपना सजाया तुमने?

अगर दिल में बस जाए दिसंबर,
और क्रिसमस का सच्चा भाव।
तो हर दिन त्योहार बने,
हर पल में हो प्रेम का चाव।

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