"रामवृक्ष बेनीपुरी: साहित्य, समाज और राष्ट्र के प्रति समर्पित जीवन"

रामवृक्ष बेनीपुरी हिंदी साहित्य के ऐसे सशक्त रचनाकार थे जिन्होंने अपने लेखन के माध्यम से समाज, राष्ट्र और मानव मूल्यों को नई दिशा दी। उनका जन्म 23 दिसंबर 1899 को बिहार के मधुबनी जिले के बेनीपुर गाँव में हुआ था। साधारण परिवार में जन्म लेकर भी उन्होंने साहित्य, पत्रकारिता और स्वतंत्रता संग्राम में असाधारण योगदान दिया। उनका निधन 9 अगस्त 1968 को हुआ, परंतु उनकी रचनाएँ आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं।

रामवृक्ष बेनीपुरी केवल साहित्यकार ही नहीं, बल्कि एक जागरूक पत्रकार और स्वतंत्रता सेनानी भी थे। वे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन से सक्रिय रूप से जुड़े रहे और अपने लेखन को राष्ट्रसेवा का माध्यम बनाया। उनकी पत्रकारिता निर्भीक, स्पष्ट और सामाजिक अन्याय के विरुद्ध थी। उन्होंने कई पत्र-पत्रिकाओं में कार्य किया और जनमानस को जागृत करने का प्रयास किया।

साहित्य के क्षेत्र में बेनीपुरी का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है। उनकी भाषा ओजस्वी, भावनात्मक और प्रभावशाली है। उनकी रचनाओं में राष्ट्रीय चेतना, सामाजिक सरोकार, ग्रामीण जीवन की समस्याएँ और मानवीय संवेदनाएँ स्पष्ट रूप से दिखाई देती हैं। वे विशेष रूप से निबंध और नाटक लेखन के लिए प्रसिद्ध हैं। "चिता के फूल" उनका प्रसिद्ध निबंध संग्रह है, जिसमें भावनाओं की गहन अभिव्यक्ति मिलती है। लाल तारा, भारत माता और नेत्रदान उनके प्रमुख नाटक हैं, जिनमें देशभक्ति और सामाजिक चेतना प्रमुख रूप से उभरती है।

रामवृक्ष बेनीपुरी की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि उन्होंने साहित्य को केवल मनोरंजन का साधन नहीं माना, बल्कि उसे समाज परिवर्तन का हथियार बनाया। उनके विचार, लेखन और संघर्षशील जीवन ने हिंदी साहित्य को नई ऊर्जा दी। इसी कारण उन्हें आधुनिक हिंदी साहित्य में एक विशिष्ट और सम्मानित स्थान प्राप्त है।

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