प्रेम - समर्पण और त्याग
प्रेम एक भाव ही नहीं वल्कि आत्मा की आवाज़ का परमात्मा से मिलन का अनुसरण है | आज के युग में लोग प्रेम को लेकर अलग-अलग व्याख्यान करते हैं और सभी अपनी इच्छाओं की पूर्ती को प्रेम से परिभाषित करते हैं , परन्तु असल प्रेम केवल समर्पण नहीं वल्कि त्याग है | प्राचीन समय में ऋषि मुनि जब इश्वर प्राप्ति के लिए ध्यान और साधना करते थे तब उसको तप कहा जाता था जिसका प्राय त्याग और समर्पण से है | आप कह सकते हैं कि इश्वर के लिए यदि किसी प्राणी का प्रेम है तो इश्वर प्राप्ति के लिए वह इंसान संसार की मोह - माया त्याग कर इश्वर प्राप्ति में समर्पित हो जाएगा | आज के युग में जिसको कलयुग से जाना जाता है उसमे प्रेम केवल इच्छाओं की पूर्ती तक ही सीमित रह गया है |
सच्चा प्यार वो अमृत है जो हमारे जीवन को खुशहाल और रंगीन बना सकती है. लेकिन अगर सच्चे प्यार का गलत फायेदा उठाया जाये तो वही अमृत विष बनकर जीवन को बर्बाद कर सकता है. बदलते ज़माने के साथ प्यार का मतलब भी बदलता जा रहा है. आज कल लोग आकर्षण को ही प्यार समझ बैठते हैं और फिर जब वो आकर्षण खत्म होता है तो प्यार भी खत्म हो जाता है. फिर वो एक दुसरे को प्यार में धोखा देते हैं | यदि आप किसी से प्रेम करते हैं तो उनको आज़ाद करें फिर देखें यदि उनको भी आपसे प्रेम है तो वो ज़रूर आपके जीवन में रुकेंगे अन्यथा किसी प्राणी को ज़बरदस्ती रोकना केवल इच्छाओं की पूर्ती हो सकता है प्रेम नहीं |
आज के इस युग में जहाँ वासना और इच्छाओं की पूर्ती के लिए इंसान कुछ भी करने को तैयार हो जाता है उस युग में प्रेम की कल्पना करना चाँद पर जिन्दगी ढूँढने के सामान है | सत्य यह भी है कि लोग इश्वर से मन्नत स्वरुप किसी इंसान को मांगते हैं और फल स्वरुप वो मिलता भी है परन्तु उसी समय इश्वर आपको सत्य भी प्रदर्शित करते हैं जिससे आप अंदाज़ा लगा सकते हैं की आपके द्वारा माँगा गया इंसान आपके प्रेम के योग्य है की नहीं | यह समझना बेहद आसान नहीं होता परन्तु जिसने इसको जान लिया उसने प्रेम को मान लिया | धर्म , शास्त्र, इतिहास, साहित्य, दर्शन और मनोविज्ञान प्रेम की इसी भित्ति पर टिके हैं। जीवन का अखंड सौंदर्य इसी प्रेम से नि:सृत हुआ है। जीवन में भक्ति, ज्ञान, सौंदर्य और माधुर्य, दृश्य और श्रव्य, चिंतन और विचार आदि इन सभी के मूल में प्रेम का यही पवित्र और नैसर्गिक रूप सामने आता है। निराशा के दुखमय क्षणों में आशा की कनक किरण सजाता है प्रेम। सचमुच जीवन के लिए जरूरी है प्रेम। यह प्रेम निश्चित तौर पर अमृतमयी संजीवनी है। पशु-पक्षी, मनुष्य, कीट-पतंगे, पेड़-पौधों के अंतस में भी प्रेम का भाव उमड़ता है। प्रेम जीवन का सुख है, आनंद है, सौंदर्य है। प्रेम का प्रभाव उमड़ता है। इसलिए प्रेम को गलत अर्थ में न ग्रहण करें।
यह सत्य है कि हर एक इन्सान को अपने मन की बात करने को एक इंसान की ज़रूरत है परन्तु इसका मतलब यह नहीं कि बात करने को प्रेम समझा जाए , यदि इन्सान इतना समझ जाए तो शायद समर्पण और त्याग की भावना इंसान के भीतर आ जाए क्योंकि किसी को पा लेना ही प्रेम नहीं वल्कि अगर कोई आपके साथ नहीं है परन्तु आप उससे प्रेम करते हैं तो उसको हमेशा आशीर्वाद स्वरुप उसके मंगल की कामना करना ही वास्तविक प्रेम है जिसको प्रेम - समर्पण और त्याग से जानते हैं |
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