महाकुंभ में हुई किन्नर अखाड़े की अनोखी काली पूजा ..
प्रयागराज का महाकुंभ, जहाँ हर गली, हर घाट और हर रेत पर आस्था की लहरें उठती हैं, इस बार कुछ और ही अद्भुत है ...क्योंकि इस बार किन्नर अखाड़े में हुआ एक तांत्रिक अनुष्ठान, जिसने आस्था और रहस्य को एक नई ऊँचाई पर पहुँचा दिया। जनवरी की सर्द रात, पूरी वसुंधरा पर चाँद की हल्की रोशनी और वातावरण में गूंजते मंत्रों की लहरें – जैसे समय खुद ठहर गई हो ... इस माहौल में, जब आसमान की ठंडी हवा थरथराती हुई हर शरीर को महसूस हो रही थी, तब किन्नर अखाड़े में एक दिव्य तंत्र साधना का आयोजन हुआ, जिसमें न केवल नए साधकों को दीक्षा मिली, बल्कि काली के अघोर रूप का परिचय भी हुआ ..
तमिलनाडु से आए अघोर साधना गुरु, महामंडलेश्वर मणि कान्तन ने इस अनुष्ठान का नेतृत्व किया। उनका हर शब्द, जैसे मंत्रों की तरह गूंज रहा था.. हवन कुंड से उठती लपटें, मानव खोपड़ियों के चारों ओर जलते दीपक, डमरू की आवाज और थरथराते ओंठों से निकलते मंत्र – सब कुछ ऐसा था, जैसे एक शक्ति आकाश से पृथ्वी तक उतरने को तैयार हो। और फिर, उन नए साधकों को दीक्षा दी गई – एक नई शुरुआत, एक नई यात्रा का आगाज हुआ .. महामंडलेश्वर मणि कान्तन ने साधकों को तंत्र विद्या के हर पहलू से अवगत कराया।
यह पूजा, जिसमें दो घंटे तक तंत्र विद्या की अनोखी साधना हुई, किन्नर अखाड़े की प्राचीन परंपराओं का जीवित उदाहरण थी। हवन कुंड की लपटें जैसे किसी और लोक की दावानल से निकल रही थीं, और चारों ओर दीपों से सजी खोपड़ियाँ इस दृश्य को और भी रहस्यमय बना रही थीं। मंत्रों की गूंज और डमरू की आवाज के बीच, एक ऐसी ऊर्जा का संचार हो रहा था, जिसे केवल महसूस किया जा सकता था।
देखा जाए तो महाकुंभ के इस अद्वितीय आयोजन ने न केवल तंत्र विद्या के रहस्यों को उजागर किया, बल्कि किन्नर अखाड़े की परंपराओं को संरक्षित रखने का भी एक अहम कार्य किया। यह साधना, न केवल आस्था का प्रतीक थी, बल्कि एक गहरी आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत भी थी, जो हर साधक के दिल में एक चिरस्थायी निशान छोड़ गई।
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