प्रिय शिक्षक को हटाए जाने पर सिसवा के इंटर कॉलेज में बवाल, प्रिंसिपल की गाड़ी तक तोड़ी

महराजगंज : चोखराज तुलस्यान सरस्वती विद्या मंदिर इंटरमीडिएट कॉलेज, सिसवा बाजार में सोमवार को उस वक्त हंगामा मच गया जब छात्रों को यह जानकारी मिली कि उनके प्रिय विज्ञान शिक्षक नंदन सिंह को स्कूल से हटा दिया गया है। इससे आक्रोशित छात्रों ने पहले क्लासरूम से निकलकर स्कूल बस में तोड़फोड़ की और फिर प्रिंसिपल कार्यालय पर धावा बोल दिया। छात्रों ने वहां कुर्सी-मेज तोड़ी और यहां तक कि प्रिंसिपल शिवाजी सिंह की कार पर भी पथराव कर उसे क्षतिग्रस्त कर दिया। ‘तानाशाही नहीं चलेगी’ के नारों से गूंजा स्कूल परिसर कक्षा 11 और 12 के छात्रों ने मैदान में इकट्ठा होकर "प्रिंसिपल की तानाशाही नहीं चलेगी" और "प्रिंसिपल मुर्दाबाद" जैसे नारे लगाए। छात्रों का कहना था कि सबसे काबिल और अनुभवी शिक्षक को हटाकर उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। प्रदर्शन घंटों तक चलता रहा और छात्र प्रबंधन के खिलाफ विरोध दर्ज कराते रहे।
पुलिस पहुंची, देर तक चलता रहा समझाने का प्रयास
सूचना पर कोठीभार थानाध्यक्ष धर्मेंद्र सिंह और सिसवा चौकी प्रभारी उमाकांत सरोज भारी पुलिस बल के साथ मौके पर पहुंचे। पुलिस ने छात्रों को शांत कराने की कोशिश की लेकिन वे अपनी मांगों पर अड़े रहे। बाद में कई दौर की बातचीत और समझाइश के बाद कुछ छात्र शांत हुए, लेकिन तनाव बना रहा। प्रिंसिपल का बयान: निर्णय प्रबंध समिति का
प्रिंसिपल शिवाजी सिंह ने मीडिया से बातचीत में बताया कि शिक्षक नंदन सिंह को हटाने का निर्णय स्कूल की प्रबंध समिति ने लिया है। उन्होंने कहा कि वह खुद भी मामले को सुलझाने में लगे हुए हैं और छात्रों की भावनाओं का सम्मान करते हैं।
छात्रों का आरोप: राजनीति का शिकार हुए शिक्षक कक्षा 12 के छात्र राजीव और अन्य छात्रों ने आरोप लगाया कि नंदन सर स्कूल के शुरू से ही छात्रों के प्रिय शिक्षक रहे हैं और अंग्रेजी माध्यम की पढ़ाई में उनकी भूमिका अहम रही है। उनका कहना था कि प्रिंसिपल के आने के बाद से स्कूल में राजनीति का माहौल बन गया है और योग्य शिक्षक को हटाया जाना उसी का नतीजा है।
अभी भी तनावपूर्ण माहौल, समाधान की कोशिश जारी
समाचार लिखे जाने तक प्रिंसिपल, पुलिस अधिकारी और शिक्षक नंदन सिंह के बीच बैठक चल रही थी। वहीं, स्कूल परिसर में तनाव की स्थिति बनी हुई है। छात्र चाहते हैं कि शिक्षक को तत्काल वापस बुलाया जाए।यह घटनाक्रम स्पष्ट करता है कि बिना संवाद और पारदर्शिता के लिए गए निर्णय कैसे शिक्षण संस्थानों में असंतोष और अशांति को जन्म दे सकते हैं। प्रशासन के लिए यह एक चेतावनी है कि छात्रों की भावनाओं और भविष्य दोनों का ख्याल रखा जाए।
रिपोर्टर : मनीष कुमार कन्नौजिया
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