महाराष्ट्र में शुरू हुआ 'कौन बनेगा मुख्यमंत्री' सीजन 2
महाराष्ट्र की राजनीति अब सच में बॉलीवुड के एक ड्रामे जैसा बन गई है। एक उद्धव से निपटे, तो दूसरा 'उद्धव' सामने आ गया, और बीजेपी की बैसाखी पॉलिटिक्स फिर से अपने पुराने अंदाज में आ गई .. सीएम पद को लेकर बीजेपी और एकनाथ शिंदे के बीच जो रस्साकशी चल रही है, वह मानो 'कौन बनेगा मुख्यमंत्री' का सीजन-2 हो। 132 सीटें जीतने के बाद भी बीजेपी बैकफुट पर नजर आ रही है। एकनाथ शिंदे तो 'सीएम बनूंगा, चाहे जो हो जाए' की तर्ज पर चल रहे हैं, जबकि बीजेपी को 12 विधायकों की और दरकार है। अब सवाल ये है कि बीजेपी गठबंधन बचाने के लिए कितना और झुक सकती है, क्योंकि उसे तो हमेशा से छोटे भाई की भूमिका निभाने की आदत हो गई है।
बात करें, 1995 की, जब शिवसेना और बीजेपी का गठबंधन हुआ था, तब बीजेपी को छोटे भाई की ही भूमिका मिली थी। मनोहर जोशी सीएम बने, गोपीनाथ मुंडे डिप्टी सीएम, और बीजेपी ने हमेशा 'बैसाखी' पर राजनीति की। फिर पिछले कुछ सालों में जब बीजेपी लीड रोल में आना चाहती थी, तो गठबंधन में तनातनी शुरू हो गई। 2019 में सीएम पद की महत्वाकांक्षा ने दोनों के रास्ते अलग कर दिए, लेकिन अब वही पुरानी कहानी फिर से वापस आ गई है।और तो और, एकनाथ शिंदे, जिनकी सीटें कम हैं, सीएम बनने की जिद पर अड़े हैं। यह वही जिद है, जो उद्धव ठाकरे ने 2019 में दिखाई थी, जब बीजेपी से गठबंधन तोड़ा था और कांग्रेस-एनसीपी के साथ सरकार बनाई। अब बीजेपी के सामने एक नया 'उद्धव' शिंदे के रूप में खड़ा है। सवाल यह है कि बीजेपी इससे कैसे निपटेगी? क्या उसे शिंदे को साइडलाइन करना चाहिए, या फिर पुराने रिश्ते निभाने के चक्कर में इसे मानना पड़ेगा?
कुल मिलाकर देखा जाए तो महाराष्ट्र में बीजेपी की राजनीति हमेशा से ठाकरे परिवार की 'हिंदुत्व' की बनाई ज़मीन पर खड़ी रही है। बालासाहेब ठाकरे ने जिस ज़मीन पर बीजेपी को खड़ा किया, अब वही ज़मीन उनके बाद के उद्धव और एकनाथ शिंदे के बीच बंटने की कगार पर है। फिलहाल बीजेपी चाहे जितना भी बैसाखी पकड़ ले, लेकिन अब महाराष्ट्र में फिर से वही पुरानी किच-किच देखने को मिल रही है.
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