मंगल ग्रह पर मिले एलियंस के जीवाश्म, एक वैज्ञानिक के दावे से मची हलचल

ब्रह्मांड हमेशा से ही इंसानों के लिए रहस्यों से भरा रहा है। आकाश में चमकते असंख्य तारे, दूर-दराज़ की आकाशगंगाएं और अनगिनत ग्रह वैज्ञानिकों को लगातार सोचने पर मजबूर करते हैं। मानव सभ्यता सदियों से यह जानने की कोशिश कर रही है कि क्या पृथ्वी के अलावा भी कहीं जीवन मौजूद है। यही सवाल आज भी अंतरिक्ष विज्ञान की सबसे बड़ी पहेलियों में से एक बना हुआ है।

वैज्ञानिक लगातार दूसरे ग्रहों पर जीवन की तलाश में लगे हुए हैं। खासतौर पर मंगल ग्रह को लेकर लंबे समय से यह माना जाता रहा है कि वहां कभी पानी मौजूद था, और जहां पानी होता है, वहां जीवन की संभावना भी हो सकती है। इसी बीच हाल ही में एक वैज्ञानिक के दावे ने पूरी दुनिया में सनसनी फैला दी है।

वैज्ञानिक का चौंकाने वाला दावा

ब्रिटेन की बकिंघम यूनिवर्सिटी के रिसर्च फेलो बैरी डिग्रेगोरियो (Barry DiGregorio) ने दावा किया है कि मंगल ग्रह पर कभी जीवित प्राणी मौजूद थे। उनका कहना है कि नासा द्वारा जारी की गई कुछ तस्वीरों में जो पत्थर दिखाई देते हैं, वे असल में साधारण चट्टानें नहीं हैं, बल्कि नरम शरीर वाले जीवों (Soft-Bodied Creatures) के जीवाश्म हो सकते हैं।डिग्रेगोरियो के अनुसार, ये तस्वीरें मंगल ग्रह पर प्राचीन जीवन के सबसे बड़े सबूत हो सकती हैं। लेकिन उनका आरोप है कि नासा और वैज्ञानिक संस्थाएं इस सच्चाई को स्वीकार नहीं कर रहीं।

नासा और वैज्ञानिक समुदाय की राय

नासा का कहना है कि मंगल से ली गई इन तस्वीरों में दिख रही अजीब आकृतियां केवल क्रिस्टल ग्रोथ यानी प्राकृतिक रूप से बने खनिज ढांचे हैं। नासा के अनुसार, ऐसे आकार चट्टानों में रासायनिक प्रक्रियाओं के कारण बन सकते हैं और इन्हें जीवन का प्रमाण नहीं माना जा सकता।हालांकि, डिग्रेगोरियो इस बात से बिल्कुल सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि इन आकृतियों का आकार और बनावट सामान्य क्रिस्टल जैसी नहीं है। वे दावा करते हैं कि क्रिस्टल कभी इस तरह मुड़ते या शाखाओं में नहीं बंटते, जैसा कि इन तस्वीरों में दिख रहा है।

तस्वीरों को लेकर संदेह

डिग्रेगोरियो का कहना है कि जिन तस्वीरों में ये संरचनाएं दिखी हैं, वैसी आकृतियां पहले कभी मंगल ग्रह पर नहीं देखी गई थीं। इसके अलावा, उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि नासा ने उस इलाके की पूरी जांच किए बिना ही अपने रोवर को आगे बढ़ा दिया।
उनके अनुसार, जिस जगह पर ये तस्वीरें ली गईं, वह “गैल क्रेटर” है, जो अरबों साल पहले झीलों से भरा हुआ इलाका रहा होगा। ऐसे स्थानों पर जीवन पनपने की संभावना अधिक होती है।

ट्रेस फॉसिल का दावा

डिग्रेगोरियो का कहना है कि तस्वीरों में दिख रही संरचनाएं छड़ या टहनियों जैसी लगती हैं, जो चट्टानों के अंदर तक घुली हुई दिखाई देती हैं। पृथ्वी पर ऐसी संरचनाओं को अक्सर “ट्रेस फॉसिल”, यानी जीवों द्वारा छोड़े गए निशान माना जाता है।उनका मानना है कि ये संरचनाएं पृथ्वी के ऑर्डोविशियन काल में पाए जाने वाले जीवों से मिलती-जुलती हो सकती हैं। यह काल करोड़ों साल पहले का था, जब समुद्रों में कई तरह के सरल जीव मौजूद थे।

नासा पर गंभीर आरोप

इस वैज्ञानिक का सबसे विवादास्पद दावा यह है कि नासा को मंगल की मिट्टी में सूक्ष्मजीवों (Microorganisms) की मौजूदगी के बारे में पहले से जानकारी है। लेकिन नासा इसे जानबूझकर सार्वजनिक नहीं कर रहा।डिग्रेगोरियो का तर्क है कि अगर नासा आज यह घोषणा कर दे कि मंगल पर जीवन के सबूत मिल चुके हैं, तो जनता और करदाता सवाल उठाएंगे कि फिर मंगल पर अरबों डॉलर खर्च कर महंगे मिशन भेजने की क्या जरूरत है।उनका आरोप है कि नासा अपने भविष्य के मिशनों और फंडिंग को सुरक्षित रखने के लिए इस जानकारी को छिपा रहा है। खासकर इसलिए क्योंकि नासा 2030 के दशक में इंसानों को मंगल भेजने की योजना बना रहा है।

एलियंस को लेकर बढ़ती चर्चाएं

यह साल एलियंस और अंतरिक्ष से जुड़ी खबरों के लिहाज से काफी चर्चा में रहा है। इससे पहले ‘31/Atlas’ नाम की वस्तु को लेकर भी अफवाहें फैली थीं कि वह एलियन स्पेसशिप हो सकती है, हालांकि बाद में नासा ने इसे धूमकेतु बताया।इसके अलावा ‘The Age of Disclosure’ नाम की डॉक्यूमेंट्री में कई पूर्व सैन्य अधिकारियों ने अज्ञात उड़ने वाली वस्तुओं (UFOs) को देखने का दावा किया था, जिससे बहस और तेज हो गई।लेकिन डिग्रेगोरियो का दावा इन सभी से अलग है, क्योंकि यह सीधे तौर पर नासा के डेटा और उसकी कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करता है।

सच्चाई क्या है?

फिलहाल, डिग्रेगोरियो के दावों को लेकर कोई ठोस वैज्ञानिक प्रमाण सामने नहीं आया है। अधिकांश वैज्ञानिक इन तस्वीरों को प्राकृतिक भू-रासायनिक संरचनाएं मानते हैं।हालांकि, इतना तय है कि मंगल ग्रह पर जीवन की खोज अभी खत्म नहीं हुई है। भविष्य में नए मिशन, बेहतर तकनीक और अधिक गहराई से की गई जांच शायद इस रहस्य से पर्दा उठा सके।जब तक पुख्ता सबूत नहीं मिलते, तब तक यह सवाल बना रहेगा क्या हम ब्रह्मांड में सच में अकेले हैं, या कहीं दूर कोई और जीवन भी मौजूद है?

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