मसूर की खेती कैसे बनाएं अधिक लाभदायक? जानिए उन्नत तकनीकें

मसूर (Lens culinaris) भारत की प्रमुख रबी फसलों में से एक है, जो प्रोटीन का बेहतरीन स्रोत है और दलहन की फसलों में विशेष स्थान रखती है। परंपरागत तरीकों से खेती करने की तुलना में उन्नत तकनीकों को अपनाकर मसूर की पैदावार और गुणवत्ता में कई गुना वृद्धि की जा सकती है। इस लेख में हम आपको बताएंगे मसूर उत्पादन की वे उन्नत वैज्ञानिक तकनीकें, जो आपके खेत की उपज बढ़ा सकती हैं।
 
1. उचित भूमि का चयन और तैयारी
 
मसूर के लिए दोमट से हल्की काली भूमि उपयुक्त होती है।
 
pH मान 6.0 से 7.5 के बीच होना चाहिए।
 
खेत को 2-3 बार हल और पाटा चलाकर भुरभुरा बनाया जाना चाहिए।
 
जलनिकासी की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए क्योंकि मसूर अधिक नमी सहन नहीं कर पाती।
 
2. उन्नत किस्मों का चयन
 
भारत में मसूर की कई उन्नत किस्में उपलब्ध हैं, जैसे:
 
किस्म का नाम                        विशेषता
मलवीय मसूर-15 अधिक उपज, रोगरोधी
एन.एल.सी. 92                       जल्दी पकने वाली
एल.एल. 699                        सूखा सहनशील
आई.पी.एल. 406 झुलसा व उखटा रोग प्रतिरोधी
 
किस्म का चयन अपने क्षेत्र की जलवायु व मिट्टी के अनुसार करें।
 
3. बीज उपचार
 
बुवाई से पहले बीजों को कार्बेन्डाजिम या थायरम (2.5 ग्राम/किग्रा बीज) से उपचारित करें।
 
इसके बाद राइजोबियम कल्चर और PSB (Phosphate Solubilizing Bacteria) से उपचार करें, ताकि जड़ ग्रंथि बन सकें और नाइट्रोजन स्थिरीकरण हो सके।
 
4. बुवाई की विधि और समय
 
बुवाई का समय: अक्टूबर के मध्य से नवंबर का पहला सप्ताह सर्वोत्तम।
 
बीज दर: 35–40 किलोग्राम/हेक्टेयर।
 
कतार से कतार की दूरी 30 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 10 सेमी रखें।
 
सीड ड्रिल या जीरो टिलेज मशीन से बुवाई करने से परिणाम बेहतर मिलते हैं।
 
5. उर्वरक प्रबंधन (Fertilizer Management)
 
तत्व            मात्रा (हेक्टेयर में)
नाइट्रोजन ( N)          20 किग्रा
फॉस्फोरस (P₂O₅)      40-50 किग्रा
पोटाश (K₂O)          20 किग्रा
 
गंधक (Sulphur) की भी पूर्ति करें (20 किग्रा/हेक्टेयर) इससे दानों की गुणवत्ता बढ़ती है।
 
सभी उर्वरक बुवाई के समय बेसल डोज के रूप में दें।
 
6. सिंचाई और जल प्रबंधन
 
मसूर को बहुत अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती।
 
सामान्यतः 1–2 सिंचाई पर्याप्त होती हैं:
 
पहली सिंचाई: बुवाई के 30–35 दिन बाद (फूल आने से पहले)।
 
दूसरी सिंचाई: फली भरने के समय।
 
सिंचाई जल भराव नहीं करे, वरना पौधों को नुकसान हो सकता है।
 
7. रोग एवं कीट नियंत्रण
 
मुख्य रोग:
 
उखटा रोग (Wilt)
 
झुलसा रोग (Blight)
 
नियंत्रण:
 
रोग प्रतिरोधी किस्में अपनाएं
 
बीज उपचार जरूर करें
 
थायरम या कार्बेन्डाजिम का छिड़काव करें
 
कीट:
 
चना चूसक कीट, फली छेदक कीट
 
नियंत्रण:
 
नीम आधारित कीटनाशकों का प्रयोग करें
 
आवश्यकता पर इमामेक्टिन बेंजोएट या क्विनालफॉस का छिड़काव करें
 
8. कटाई और उपज
 
जब 75-80% फसल की फल्लियाँ पक जाएं, तब कटाई करें।
 
कटाई के बाद फसल को धूप में सुखाकर गहाई करें।
 
सामान्यतः 12-18 क्विंटल/हेक्टेयर उपज मिलती है, परंतु उन्नत तकनीक अपनाने से 20-25 क्विंटल/हेक्टेयर तक उपज संभव है।
 
मसूर की खेती में यदि किसान उन्नत बीज, उचित बुवाई समय, उर्वरक प्रबंधन, और रोग-कीट नियंत्रण जैसी वैज्ञानिक तकनीकों को अपनाते हैं, तो उन्हें उच्च उपज और बेहतर मुनाफा मिल सकता है। साथ ही, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को ध्यान में रखते हुए कम पानी और सूखा सहनशील किस्मों को बढ़ावा देना चाहिए।
 
खेती को परंपरा नहीं, अब विज्ञान से जोड़ें-यही उन्नति का रास्ता है।

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