CJI गवई पर हमले की कोशिश पर भड़कीं मायावती: “यह घटना अति-दुखद और शर्मनाक है”
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सुप्रीमो मायावती ने सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी. आर. गवई पर हमले की कोशिश की घटना को लेकर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। उन्होंने इसे “अति-दुखद एवं शर्मनाक” घटना बताया और कहा कि इस तरह की हरकत की जितनी निंदा की जाए, वह कम होगी।
मायावती ने अपने आधिकारिक सोशल मीडिया (X) हैंडल पर लिखा कि भारत के प्रधान न्यायाधीश श्री बी.आर. गवई के साथ सुनवाई के दौरान उन पर अभद्रता की कोशिश “अति-दुखद तथा शर्मनाक” है। उन्होंने आग्रह किया है कि इस घटना का “उचित और समुचित संज्ञान” लिया जाना चाहिए।
इस हमले की कोशिश का सिलसिला तब शुरू हुआ जब एक वकील राकेश किशोर ने न्यायालय में सुनवाई के दौरान सीजेआई गवई की ओर जूता उछालने का प्रयास किया। लेकिन सुरक्षा व्यवस्था के कारण वे सफल न हो सके और उन्हें तुरंत हिरासत में ले लिया गया। बाद में पूछताछ के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया।
इस घटना ने न केवल न्यायपालिका की मर्यादा पर प्रश्न खड़ा किया है, बल्कि देशव्यापी स्तर पर राजनीतिक और सामाजिक हलकों से तीखी आलोचनाएं भी सामने आई हैं। कई अन्य नेता तथा पार्टियाँ इस घटना की निंदा कर रही हैं। परलोकप्रिय स्तर पर इसे न्यायपालिका के अधिकार और स्वतंत्रता पर हमला माना जा रहा है।
मायावती का यह भी कहना है कि ऐसी घटना न केवल न्याय व्यवस्था की गरिमा को आहत करती है, बल्कि लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के लिए भी खतरनाक है। उन्होंने संकेत दिया कि इस तरह की कार्रवाई कानूनी प्रक्रिया और संवैधानिक मानदंडों के विपरीत है।
वहीं, हमले के पीछे के कारणों को लेकर विभिन्न बयान सामने आ रहे हैं। आरोपी वकील राकेश किशोर ने कहा है कि उन्हें अपने कृत्य पर कोई पछतावा नहीं है।
इसके बावजूद, न्यायपालिका और बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने इस तरह की हरकत को गंभीर उल्लंघन माना है।
राजनीतिक दलों ने इस घटना को संवैधानिक संकट और न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर हमला बताया है। प्रधानमंत्री मोदी ने इसे “हर भारतीय को आक्रोशित करने वाला” मामला कहा और इसकी कड़ी निंदा की।
कांग्रेस की सोनिया गांधी ने कहा कि यह घटना सिर्फ न्यायाधीश पर हमला नहीं, बल्कि संविधान पर हमला है।
इस तरह की घटना नागरिकों के बीच डर और असमंजस्य की भावना भी उत्पन्न कर सकती है, क्योंकि यह संकेत देती है कि न्यायपालिका तक भी अभद्रता पहुँच सकती है। इस दृष्टि से, मायावती की मांग कि इस घटना का “उचित और समुचित संज्ञान” लिया जाना चाहिए, उसी प्रकार की प्रतिक्रिया की मांग है जो न्याय प्रणाली की गरिमा को बहाल कर सके।
इस घटना ने सार्वजनिक चेतना को झकझोड़ा है और यह सवाल उठाया है कि न्यायालयों में सुरक्षा व्यवस्था, मीडिया एवं राजनीतिक रणभूमि में न्याय की भूमिका को किस प्रकार सुरक्षित रखा जाए। मायावती का बयान इस दिशा में एक स्पष्ट राजनीतिक एवं संवैधानिक प्रतिक्रिया है, जो न्याय की मर्यादा बनाए रखने की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
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