पेड़ों को पानी देने से है, पितृ होते हैं तृप्त

मांडू : हमारा जीवन, धर्म और संस्कृति सब प्रकृति पर केंद्रित है। प्रकृति भाव प्रधान है। नर्मदा परिक्रमा हमारे लिए कोई यात्रा नहीं बल्कि जीवन जीने की साधना है। एक ऐसी साधना जो सनातन धर्म की संस्कृति को प्रकट करती है। दुनिया के लिए यह नदि है पर हमारे लिए शक्ति है।
यह बात निराहारी संत दादा गुरु ने पर्यटन नगरी मांडू में प्रवेश के दौरान मीडिया से चर्चा में कहीं। आगे चर्चा में उन्होंने कहा कि दुनिया मां नर्मदा को नदी के रूप में देखती है पर हमारी संस्कृति के अनुसार हम उसे शक्ति और भगवती के रूप में देखते हैं। यह प्रत्यक्ष शक्ति है जिस पर हमारा धर्म संस्कृति सब केंद्रित है। हमारी साधना उन्हें पर समर्पित है। हम सभी को अपनी धर्म और संस्कृति पर गर्व करना चाहिए और उसके अनुरूप ही जीवन में आचरण करना चाहिए। यह प्रकृति जो हमें जीवन देती है उसके संरक्षण के लिए हमें शपथ लेनी चाहिए। प्रकृति की रक्षा करने के साथ हमें जीवन पर्यंत पौधारोपण को अपनी आदत बनाना चाहिए।
सनातन धर्म ने विश्व को सिखाई जीने की कला
संत दादा गुरु ने चर्चा में आगे कहा कि हमारे देश की सनातन संस्कृति अद्भुत है और पूरा विश्व हमारी संस्कृति से प्रभावित है। सनातन धर्म और संस्कृति ने पूरे विश्व को जीने की कला सिखाई है। सनातन धर्म वर्तमान दौर में भी प्रासंगिक है। मां नर्मदा हमारी जीवन रेखा है ।
श्रद्धालुओं के साथ पर्यटकों ने भी लिया दादा गुरु का आशीर्वाद
इधर कालीबावड़ी से तारापुर घाट क्षेत्र होते हुए दादा गुरुदेव संत जनों के साथ दोपहर 4 बजे मांडू पहुंचे। इस दौरान उनके भक्तों और श्रद्धालुओं ने उनका स्वागत किया। मार्ग में परिक्रमा के दौरान उन्होंने जगह-जगह पौधों का वितरण किया और लोगों को पौधारोपण करने की प्रेरणा दी। मांडू पहुंचने पर उन्होंने सोनगढ़ गेट पर विश्राम कर श्रद्धालुओं से चर्चा की उसके बाद नीलकंठ महादेव मंदिर का जलाभिषेक किया और फिर उन्होंने नगर में भ्रमण कर चतुर्भुज श्री राम मंदिर मांडू में पूजन किया। रविवार सुबह नर्मदा तट रेवा कुंड पर दादा गुरु पूजन कर परिक्रमा के लिए आगे बढ़ेंगे।
नालछा के पत्रकारों से चर्चा के दौरान दादा गुरु ने श्री रामपालकी धाम आने की बात कही।
अवधूत योगी संत दादा गुरु से स्थानीय पत्रकारों ने चर्चा के दौरान ब्रह्मलीन संत श्री श्री 1008 सर्वेश्वर दास जी महाराज की तपोस्थली श्री रामपाल की धाम पधारने का अनुरोध किया, जिस पर श्री दादा गुरु के द्वारा कहा कि परिक्रमा के बाद जब भी इधर आना होगा मैं श्री रामपालकी धाम भी आऊंगा।
वही रात्री में दादा गुरुदेव के द्वारा प्रवचन दिया गया जिसमें दादा गुरु जी ने कहा गया कि नर्मदा परिक्रमा करते हे तो पूरी नर्मदा परिक्रमा सिर्फ दो कुंड मिलते हे एक कुंड जहा से मां नर्मदा रेवा के नाम से निकली वह अमरकंठ जहा पर एक कुंड है उसे रेवा कुंड कहते हे वैसे ही पूरी नर्मदा यात्रा के दौरान आप मांडू पहुंचते हैं तो एक कुंड यहां भी हैं जिसे रेवा कुंड कहते हे जब तक आप नर्मदा परिक्रमा के दौरान अगर दोनों कुंड के दर्शन नहीं करते हैं तो आपकी नर्मदा यात्रा पूरी नहीं होगी। वहीं मांडू जो है यह विंध्याचल पर्वत पर स्थापित है मांडू की स्थापना मुनि मांडकेश्वर के द्वारा हुई थी नर्मदा परिक्रमा सबसे पहले मुनि मांडकेश्वर के द्वारा की गई थी वही मांडू जो है वह आनंद की नगरी है यहां साक्षात भगवान शिव विराजमान हैं भगवान शिव जहा होते है वहा आनंद ही आनंद होता हे यहां पर भगवान शिव साक्षात रहते है और उनकी शिवलिंग पर हमेशा ही जल की धारा से अभिषेक होता रहता है वही यहा पर वनवासी चतुर्भुज श्री राम भी विराजमान हैं जो सदियों से मांडू में विराजमान है चतुर्भुज श्री राम ने जब रूक्मणी जी का जन्म हुआ था उस समय चतुर्भुज श्रीराम वनवासी राम के रूप में आकर दर्शन दिए और रूक्मणी का नामकरण क् मांडू में हजार पांच सो वर्ष का इतिहास बताते हैं लेकिन यहां का इतिहास भगवान राम के समय से है भगवान कृष्ण के समय से है यह अय्याशी की नगरी नहीं है यह तप और आनंद की नगरी है यहां आकर आप तप करे आप साक्षात भगवान को न मिले तो कहना यहां साक्षात मां नर्मदा है जिसके गर्भ में से हमेशा शंकर उत्पन्न होते हैं यह साक्षात भगवान शिव विराजमान हैं यहां वनवासी चतुर्भुज श्री राम विराजमान हे यह भूमि साक्षात अयोध्या है जहा वनवासी चतुर्भुज श्री राम अपने भक्तों के लिए विराजमान हे यह मांडू जो है देव भूमि है यहां पर देव दर्शन से ही आप के सारे पाप खत्म हो जाते हे यह पुण्य की भूमि है जिसे लोग गलत भ्रमित कर के राजा महाराजा ओ के बारे में जानकारी दे रहे हैं यह राजा महाराजा की नगरी नहीं वनवासी चतुर्भुज श्री राम और भगवान शिव और मां रेवा की नगरी है
रिपोर्टर : अशोक मिरदवाल
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