नासा की चेतावनी: भारत के 5 शहर तेजी से जमीन में धंस रहे, खतरे में करोड़ों की जिंदगी

2100 तक मुंबई 1.90 फीट डूब सकता है, नासा का अलर्ट
नासा ने चेतावनी दी है कि भारत के कई प्रमुख शहर दुनिया के उन स्थानों में शामिल हैं, जो तेजी से जमीन में धंस रहे हैं। समुद्र के बढ़ते जलस्तर और भूजल के अत्यधिक दोहन के कारण मुंबई जैसे शहर 2100 तक 1.90 फीट तक डूब सकते हैं। पहले से बाढ़ झेल रही मुंबई के लिए यह खतरा और गंभीर होता जा रहा है।
भारत के शहर भी वैश्विक खतरे की जद में
दुनिया के कई बड़े शहरों में जमीन धीरे-धीरे नीचे जा रही है और भारत के भी कई शहर इस सूची में शामिल हैं। इस संकट की प्रमुख वजह है जलवायु परिवर्तन और ज़मीन के नीचे से अत्यधिक पानी निकालना। इससे बाढ़ और भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं का खतरा भी बढ़ रहा है।
कोलकाता: हर साल 2.8 सेमी तक धंस रही जमीन
2014 से 2020 के बीच कोलकाता में हर साल जमीन 0.01 से 2.8 सेंटीमीटर तक नीचे गई है। सबसे ज्यादा असर भाटपारा में देखा गया, जहां प्रति वर्ष 2.6 सेंटीमीटर का धंसाव रिकॉर्ड किया गया है। करीब 90 लाख लोग ऐसे क्षेत्रों में रह रहे हैं जो बाढ़ और भूकंप की चपेट में आ सकते हैं। नासा के अनुसार, 2024 में समुद्र का जलस्तर भी 0.59 सेंटीमीटर तक बढ़ा है।
चेन्नई: भूजल दोहन बना खतरे की जड़
चेन्नई में भी हर साल जमीन 0.01 से लेकर 3.7 सेंटीमीटर तक नीचे जा रही है। सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्र थरमनी है, जहां करीब 14 लाख लोग रहते हैं। यहां भूजल का अत्यधिक दोहन जमीन को कमजोर बना रहा है।
अहमदाबाद: 5.1 सेंटीमीटर तक हुआ धंसाव
अहमदाबाद में 2014 से 2020 के बीच हर साल जमीन में 0.01 से 5.1 सेंटीमीटर तक की गिरावट दर्ज की गई है। पिपलाज क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित है, जहां 4.2 सेंटीमीटर तक जमीन नीचे गई है। इस शहर में लगभग 51 लाख लोग प्रभावित हो सकते हैं।
मुंबई और सूरत: समुद्र किनारे बसे शहरों पर दोहरी मार
मुंबई की स्थिति चिंताजनक है। समुद्र का बढ़ता जलस्तर और भूजल का अत्यधिक दोहन, दोनों मिलकर इसे डूबने की कगार पर ले जा रहे हैं। वहीं सूरत, जो एक प्रमुख औद्योगिक शहर है, भी इसी खतरे का सामना कर रहा है। यहां भी जलवायु परिवर्तन और भूजल दोहन प्रमुख कारण हैं।
जकार्ता: दुनिया का सबसे तेजी से डूबता शहर
इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता का आधा हिस्सा समुद्र तल से नीचे जा चुका है। 1970 से अब तक कुछ इलाकों में जमीन 4 मीटर तक धंस चुकी है। बार-बार आने वाली बाढ़ वहां के लोगों के लिए आम समस्या बन चुकी है।
बीबीसी और एनटीयू की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में 48 शहर ऐसे हैं जहां लगभग 16 करोड़ लोग इस खतरे से जूझ रहे हैं। इन सभी शहरों में भूजल दोहन और जलवायु परिवर्तन प्रमुख कारण हैं।
क्या हैं समाधान के रास्ते?
कुछ शहरों ने बाढ़ से बचाव के लिए दीवारें और बांध बनाए हैं — जैसे जकार्ता, अलेक्जेंड्रिया और हो ची मिन्ह सिटी। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि इससे "बाउल इफेक्ट" हो सकता है, यानी बारिश का पानी फंस कर अंदर ही रह जाता है, जिससे बाढ़ का खतरा और बढ़ता है।
इस संकट से निपटने के लिए सख्त कानूनों, जागरूकता और बेहतर जल प्रबंधन की आवश्यकता है। यदि समय रहते कदम नहीं उठाए गए, तो करोड़ों लोगों का जीवन और अरबों की संपत्ति खतरे में पड़ सकती है।
नासा की यह चेतावनी केवल एक आंकड़ा नहीं, बल्कि भविष्य के लिए एक गंभीर संकेत है। हमें अब सजग होकर ठोस उपाय करने होंगे, ताकि आने वाली पीढ़ियों को इस पर्यावरणीय संकट से बचाया जा सके।
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