“मुझे नौशाद हो गया” — पाकीज़ा और नौशाद साहब के जादू का वो किस्सा
फिल्म पाकीज़ा के निर्माण के दौरान कमाल अमरोही को नौशाद साहब की संगीत प्रतिभा को बेहद करीब से देखने और समझने का अवसर मिला। इस दौरान नौशाद की असाधारण कला और सूझबूझ ने कमाल अमरोही को इतना प्रभावित किया कि उन्होंने उनकी प्रशंसा में बाकायदा क़सीदे तक लिखे। नौशाद की संगीत यात्रा और उनकी महानता का गहन उल्लेख चौधरी जिया इमाम की किताब “नौशाद: ज़र्रा जो बना आफ़ताब” में मिलता है। इस पुस्तक में नौशाद की संगीत प्रतिभा के अनेक उदाहरणों के साथ-साथ पाकीज़ा फिल्म के निर्माण और उसमें उनके योगदान का विस्तृत विवरण दिया गया है।
किताब के अनुसार, पाकीज़ा का संगीत मूल रूप से गुलाम मोहम्मद साहब तैयार कर रहे थे और रिकॉर्डिंग के समय नौशाद साहब अक्सर वहां मौजूद रहते थे। कमाल अमरोही की इच्छा थी कि इस फिल्म का संगीत नौशाद साहब ही दें, लेकिन उनके आग्रह पर यह जिम्मेदारी गुलाम मोहम्मद साहब को सौंपी गई। उस समय कमाल अमरोही ने नौशाद साहब से कहा था कि जब भी उन्हें उनकी जरूरत पड़ेगी, वे उन्हें जरूर ज़हमत देंगे। इस पर नौशाद साहब ने भी यह कहकर हामी भरी कि जरूरत पड़ने पर वे पूरी खिदमत करेंगे।
फिल्म की तकमील के दौरान दुर्भाग्यवश गुलाम मोहम्मद साहब का हार्ट अटैक से इंतकाल हो गया, जिसके बाद पाकीज़ा का शेष कार्य नौशाद साहब को संभालना पड़ा। फिल्म पूरी होने पर कमाल अमरोही ने नौशाद साहब को बैकग्राउंड म्यूजिक देने के लिए पूरी फिल्म दिखाई। फिल्म देखने के बाद नौशाद साहब ने कहा कि वे बैकग्राउंड म्यूजिक तो जरूर देंगे, साथ ही अगर कमाल साहब चाहें तो फिल्म के बारे में अपनी राय भी रख सकते हैं। कमाल अमरोही ने इस सुझाव को सहर्ष स्वीकार किया।
इसके बाद नौशाद साहब ने फिल्म को जरूरत से ज्यादा लंबा और कथानक में झोल वाला बताते हुए इसे छोटा करने की सलाह दी। कमाल अमरोही की अनुमति मिलने पर नौशाद साहब ने फिल्म के डायरेक्टर डी.एन. पाई के साथ बैठकर न केवल फिल्म की एडिटिंग करवाई, बल्कि कुछ दृश्यों को दोबारा शूट भी करवाया। जब यह संशोधित संस्करण कमाल अमरोही ने देखा, तो उन्होंने भावुक होकर कहा कि उन्हें यह नहीं पता था कि नौशाद साहब संगीत के अलावा अन्य कलाओं में भी इतने माहिर हैं और उन्होंने वही सब पर्दे पर उतार दिया है, जो उनके दिल में था।
किताब में यह भी उल्लेख है कि बैकग्राउंड म्यूजिक के लिए नौशाद साहब ने फिल्म के रिकॉर्डिस्ट जगताप के ज़रिये बलसार, बलमोड़ और अन्य स्थानों से विशेष साउंड इफेक्ट मंगवाए। इनमें रात के समय चलती ट्रेन की आवाजें, पुल से ट्रेन के गुजरने की ध्वनि, ट्रेन का स्टार्ट होना और रुकना, ब्रेक लगने की आवाज, विभिन्न प्रकार की ट्रेन सीटी, परिंदों का चहचहाना, झींगुरों की आवाजें, अलग-अलग पाज़ेबों की झंकार, चूड़ियों की खनक, हवेली के दरवाज़ों का खुलना-बंद होना और रेल कंपार्टमेंट के दरवाज़ों की आवाजें शामिल थीं। इन सभी साउंड इफेक्ट्स के ट्रैक तैयार कर नौशाद साहब ने फिल्म के संगीत को गढ़ा।
फिल्म पूरी होने के बाद कमाल अमरोही नौशाद साहब के काम से इतने मुत्तासिर हुए कि एक दिन वे स्वयं उनके घर पहुंचे और एक तहरीर लिखी—
“किसी को तपेदिक हो जाती है, किसी को टाइफाइड, मुझे नौशाद हो गया।”
दिलचस्प बात यह रही कि नौशाद साहब इस फिल्म में अपना नाम शामिल नहीं करना चाहते थे, लेकिन कमाल अमरोही के लगातार आग्रह पर उन्होंने इसके लिए सहमति दी। वर्ष 1971 में प्रदर्शित पाकीज़ा के गीत आज भी उतने ही मकबूल हैं और भारतीय सिनेमा के स्वर्णिम इतिहास में नौशाद साहब के जादू की गवाही देते हैं।

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