चांद पर ‘न्यूक्लियर कब्जा’! शुरू हो चुकी है स्पेस की सबसे बड़ी जंग

चांद पर अब तिरंगा, सितारे या ध्वज गाड़ने की बात नहीं… अब जंग है ताकत, टेक्नोलॉजी और ठिकाने की! 55 साल बाद फिर से वही मंज़िल, लेकिन इस बार मिशन अलग है – परमाणु शक्ति से चांद को रोशन करना।

एक ओर है अमेरिका, जो अपने दम पर चांद की सतह पर पहला न्यूक्लियर रिएक्टर उतारने की तैयारी में है, दूसरी ओर है रूस-चीन का नया ‘स्पेस गठबंधन’, जो मिलकर चंद्रमा को ऊर्जा की रेस का अखाड़ा बना चुके हैं।

नया स्पेस रेस? NASA चाँद पर परमाणु रिएक्टर लगाने की योजना को तेज़ करता है |  विज्ञान, जलवायु और तकनीकी समाचार : r/space

क्या है असली खेल?
चांद पर दिन और रात पृथ्वी के मुकाबले 14-14 दिन के होते हैं। यानी दो हफ्ते तेज़ रोशनी, फिर दो हफ्ते अंधेरे की कड़ाके की ठंड। ऐसे हालात में सोलर पैनल और बैटरी नहीं चल पाएंगे, ज़रूरत है ऐसे ऊर्जा स्रोत की जो 24x7 बिजली दे, और इसका जवाब है – परमाणु रिएक्टर।

जो भी देश सबसे पहले चांद पर न्यूक्लियर बेस बना लेगा, वही वहां इंसानी बस्तियों का भविष्य तय करेगा। साथ ही चांद के उस हिस्से को "Keep Out Zone" भी घोषित कर सकता है – यानी बाकी देशों को चेतावनी कि ये इलाका अब उसका है!

नासा की दौड़ – 2030 तक मिशन पूरा करने की डेडलाइन
अमेरिका की स्पेस एजेंसी NASA ने कमर कस ली है। आदेश साफ है – 2030 तक 100 किलोवॉट का न्यूक्लियर रिएक्टर चांद की सतह पर होना चाहिए। इस मिशन की रफ्तार इसलिए बढ़ा दी गई है क्योंकि…

रूस-चीन बना चुके हैं ज्वाइंट प्लान
2021 में रूस की Roscosmos और चीन की CNSA ने मिलकर International Lunar Research Station की नींव रखी थी। अब इसी साल मई में, दोनों देशों ने चांद पर लूनर पावर स्टेशन बनाने का औपचारिक समझौता भी कर लिया है। उनका लक्ष्य – 2033 से 2035 के बीच रिएक्टर लगाना।

अंतरिक्ष दौड़: अमेरिका का लक्ष्य चंद्रमा पर परमाणु रिएक्टर के साथ चीन और  रूस को हराना है : r/technology

आसान नहीं है ये न्यूक्लियर मिशन!
NASA का Starship Lunar Lander अभी टेस्टिंग फेज में है। कई तकनीकें अभी भी विकास के दौर में हैं। दूसरी ओर, रूसी वैज्ञानिक दावा कर रहे हैं कि उनके पास अनुभव और तकनीक दोनों हैं, जबकि चीन की टेक्नोलॉजी आमतौर पर पर्दे में रहती है – लेकिन इस मिशन के लिए उसे रूस की मदद लेनी ही होगी।

क्या अमेरिका दोबारा मारेगा बाज़ी?
1969 में अमेरिका ने सोवियत संघ को हराकर नील आर्मस्ट्रॉन्ग के कदमों से इतिहास रचा था। अब देखना ये है कि क्या 21वीं सदी की इस दूसरी स्पेस रेस में भी अमेरिका जीत दर्ज करेगा, या रूस-चीन का गठबंधन नया वर्चस्व रच देगा?

जो भी हो…स्पेस की सबसे सनसनीखेज़ दौड़ शुरू हो चुकी है, और इसकी फिनिश लाइन है – चांद की चुपचाप चमकती सतह।अब इंतज़ार है… कौन वहां सबसे पहले ‘न्यूक्लियर झंडा’ गाड़ेगा!

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