“एक एएनएम, दो विधायक और स्वास्थ्य विभाग की दोहरी नीति! आखिर क्यों मंजू कुमारी पर इतनी मेहरबानी?” पलामू से अमित की रिपोर्ट
पलामू : जिले के तरहसी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से जुड़ा एक मामला इन दिनों स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली और राजनीतिक दखल पर गंभीर सवाल खड़े कर रहा है। मामला है एएनएम मंजू कुमारी का, जिनका सेवा इतिहास, स्थानांतरण और पुनः पदस्थापन किसी रहस्य से कम नहीं दिखाई देता। एएनएम मंजू कुमारी ने वर्ष 2005 में अनुबंध पर तरहसी स्वास्थ्य केंद्र में अपनी सेवा की शुरुआत की। लगातार 10 वर्षों तक ईमानदारी से कार्य करने के बाद वर्ष 2015 में उनकी सेवा स्थाई की गई। इसी वर्ष उनका तबादला हुसैनाबाद किया गया, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से कुछ ही दिनों बाद उन्होंने पुनः तरहसी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में योगदान कर लिया। इसके बाद 2015 से 2025 तक वे लगातार तरहसी पीएचसी में ही जमी रहीं।
जुलाई 2025 में स्वास्थ्य विभाग ने उन्हें हरिहरगंज प्रखंड के खड़कपुर स्वास्थ्य उपकेंद्र स्थानांतरित कर दिया। लेकिन वहां उन्होंने न तो प्रभार लिया और न ही कार्यभार संभाला। इसी बीच 16 जुलाई 2025 को विभाग ने एक और आदेश जारी कर उन्हें पाटन प्रखंड के किशुनपुर स्वास्थ्य उपकेंद्र भेज दिया, जहां वे वर्तमान में कार्यरत हैं।
स्थानांतरण के बावजूद मंजू कुमारी द्वारा तरहसी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का सरकारी कमरा खाली नहीं किया गया। इस पर प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉ. दिलीप कुमार सिंह ने पत्रांक 511, दिनांक 19 अगस्त 2025 के तहत उन्हें कमरा खाली करने का आदेश दिया। विभाग द्वारा दो-दो बार नोटिस जारी किए गए, लेकिन नियमों को दरकिनार करते हुए आज तक कमरा खाली नहीं किया गया।
मामले ने तब और तूल पकड़ लिया जब 9 दिसंबर 2025 को पांकी विधायक डॉ. कुशवाहा शशिभूषण मेहता की अनुशंसा पर स्वास्थ्य विभाग ने एक पत्र जारी किया। इसमें कहा गया कि तरहसी पीएचसी में पदस्थापित एएनएम दयामुनि तिर्की के 31 जनवरी 2026 को सेवानिवृत्त होने के बाद 1 फरवरी 2026 से मंजू कुमारी को अतिरिक्त एएनएम के रूप में पदस्थापित किया जाएगा।
हैरानी की बात यह है कि 11 दिसंबर 2025 को विभाग ने पूर्व विधायक बिट्टू सिंह की अनुशंसा का हवाला देते हुए एक और पत्र जारी कर वही आदेश दोहराया। सवाल यह उठता है कि जब मंजू कुमारी पहले से अन्यत्र पदस्थापित हैं, तो दो-दो विधायकों की अनुशंसा पर उन्हें फिर से तरहसी लाने की इतनी कोशिश क्यों?
क्या यह नियमों से ऊपर राजनीतिक दबाव का मामला है? या फिर स्वास्थ्य विभाग में “चहेते कर्मचारियों” के लिए अलग कानून चलता है? यह प्रकरण न केवल प्रशासनिक पारदर्शिता पर सवाल उठाता है, बल्कि ईमानदारी से दूरस्थ क्षेत्रों में कार्यरत कर्मियों के मनोबल को भी ठेस पहुंचाता है। अब देखना यह है कि स्वास्थ्य विभाग इस पूरे मामले पर क्या स्पष्ट जवाब देता है।
रिपोर्टर : अमित सिंह

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