पपीता उत्पादन गाइड: बीज से लेकर कटाई तक
पपीता (Carica papaya) एक उष्णकटिबंधीय फल है, जो स्वादिष्ट होने के साथ-साथ स्वास्थ्यवर्धक भी होता है। यह विटामिन C, विटामिन A, पोटैशियम और फाइबर से भरपूर होता है। पपीता की खेती छोटे और बड़े किसानों दोनों के लिए लाभकारी साबित हो सकती है, क्योंकि इसकी मांग साल भर रहती है और बाजार मूल्य स्थिर रहता है।
1. मिट्टी और जलवायु:
पपीता की खेती के लिए गहरी, जल निकासी वाली दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है। यह फल गर्म और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में अच्छी तरह उगता है। तापमान 21°C से 33°C के बीच होना चाहिए, और पपीते की पौधों को ठंडी हवाओं से बचाना आवश्यक है।
2. पौध चयन:
पपीते के लिए हाईब्रिड किस्मों का चयन करना लाभकारी होता है। प्रमुख किस्में:
काउंट्री पपीता – जल्दी फल देने वाली किस्म
हेल्पर – उच्च उत्पादन और बेहतर गुणवत्ता वाली किस्म
लार्ज फ्रूट हाइब्रिड – बड़े आकार के फलों के लिए
3. रोपण और दूरी:
पपीता की पौधों को लगभग 60–75 सेंटीमीटर की दूरी पर रोपना चाहिए। यदि अधिक दूरी रखते हैं तो पौधों को पर्याप्त जगह मिलती है और रोगों का जोखिम कम होता है।
4. सिंचाई:
पपीते को नियमित जल की आवश्यकता होती है, विशेषकर गर्मियों में। सूखी मिट्टी में पानी की कमी से पौधे कमजोर हो जाते हैं और फलों का आकार छोटा हो सकता है।
5. पोषण और उर्वरक:
पौधों की वृद्धि और उच्च उत्पादन के लिए नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश युक्त उर्वरक देना जरूरी है। जैविक खाद जैसे गोबर की खाद या कम्पोस्ट का प्रयोग भी फायदेमंद होता है।
6. रोग और कीट नियंत्रण:
रूट रॉट और फॉस्फोरस रोग – अच्छी जल निकासी और फफूंदनाशी दवा का प्रयोग
पत्तियों पर कीट – नीम के तेल या जैविक कीटनाशक से नियंत्रण
पौधों के बीच पर्याप्त दूरी और धूप में रोपण करने से रोग नियंत्रण में मदद मिलती है।
7. फल की कटाई:
पपीते का फल रोपण के 6–9 महीनों के भीतर तैयार होता है। फल को हरी-पीली अवस्था में काटा जाता है और बाजार में भेजा जाता है।
पपीता उत्पादन छोटे और बड़े किसानों दोनों के लिए फायदेमंद है। सही किस्म, मिट्टी, सिंचाई और पोषण के साथ यह खेती साल भर निरंतर लाभ दे सकती है। इसके साथ ही, पपीता के पौधों से स्वास्थ्यवर्धक फल प्राप्त होने के कारण किसान और उपभोक्ता दोनों ही लाभान्वित होते हैं।


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