पीएम मोदी का विदेश में बिहारी दांव , जीत लेंगे बिहार चुनाव का किला ....

याद करिए ... 2021 का वो समय जब ,  पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव का बिगुल बजने वाला था, और उससे पहले ही कोविड की दूसरी लहर ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था ... इस कठिन दौर में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लंबी दाढ़ी ने राजनीतिक गलियारों में एक नई हलचल मचाई। उनकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर तैरने लगीं, और धीरे-धीरे उन्हें बंगाल के आदर्श, रवींद्रनाथ टैगोर से जोड़ने का सिलसिला शुरू हो गया। राजनीतिक पंडितों ने इसे मोदी की रणनीतिक कुशलता के संकेत के रूप में देखा, जबकि विपक्षी दलों ने यह तंज कसा कि मोदी ने बंगाल चुनाव के लिए टैगोर की छवि को एक 'राजनीतिक हथियार' बना लिया है। अब सवाल था—क्या यह मोदी की दूरदर्शिता थी, या एक खेल? वहीं अब जब बिहार के चुनाव का बिगुल बजा है तो , फिर कुछ ऐसा ही हुआ है . 

प्रधानमंत्री मोदी मॉरीशस के दो दिवसीय दौरे पर है। कल जैसे ही वह वहां पहुंचे, उन्होंने अपने स्वागत का वीडियो सोशल मीडिया पर साझा किया, जिसमें अंग्रेजी, हिंदी के साथ-साथ भोजपुरी में भी संदेश था। जी हां , भोजपुरी? हां, यह वही भोजपुरी है जो बिहार के दिल से निकलकर विदेशों तक पहुंची है। इसीलिए अब सवाल उठ रहा है कि क्या यह महज एक संयोग था, या फिर मोदी का भोजपुरी प्रेम एक गहरे सियासी प्रयोग का हिस्सा था? क्या मोदी की ये भोजपुरी पंक्तियां बिहार विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर कही गई थीं?

मॉरीशस में पीएम मोदी का स्वागत 'गीत-गवई' के रूप में हुआ—यह भोजपुरी लोक संगीत था, जो मोदी की मुस्कान को और भी चमकाने का कारण बना। महिलाएं गीत गा रही थीं, और प्रधानमंत्री एक गदगद मुद्रा में उन्हें सुन रहे थे। अब जब प्रधानमंत्री ने खुद अपना भाषण भोजपुरी में दिया, तो यह कोई सामान्य घटना नहीं थी। वह भाषण मॉरीशस में भारतीय मूल के लोगों के बीच, विशेष रूप से बिहार के भोजपुरी क्षेत्रों से जुड़ी राजनीतिक और सांस्कृतिक जड़ों को पहचानने का प्रयास था। वहाँ के दो प्रमुख राजनीतिक घराने—रामगुलाम और जगन्नाथ—भी बिहार से जुड़े हुए थे। और फिर, मॉरीशस की 70% आबादी भारतीय मूल की है, तो प्रधानमंत्री का भोजपुरी में भाषण उन लोगों के दिलों में उतरने का एक सशक्त तरीका था।वहीं भोजपुरी बोलकर उन्होंने बिहार के लोगों का भी दिल जितने का प्रयास किया .. जी हां ,राजनीति में कोई भी कदम बेवजह नहीं उठाया जाता। ये वही राजनीति है, जहां एक शब्द, एक इशारा, और एक भावनात्मक जुड़ाव भी बड़े बदलाव ला सकता है।

बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखें नवंबर में हैं, और प्रधानमंत्री ने मार्च में ही भोजपुरी प्रेम का इजहार कर दिया। अब सवाल यह है—क्या यह भोजपुरी प्रेम चुनावों तक बिहार के मतदाताओं के दिलों में छाप छोड़ पाएगा? क्या कोई नेता अपनी मातृभाषा में दो-चार शब्द बोलकर वोटों का पहाड़ बना सकता है? जवाब इतना सीधा नहीं है। राजनीति कोई गणित नहीं, बल्कि एक रासायनिक मिश्रण है, जिसमें हर तत्व का अपना अहम रोल है, और यही मिश्रण एक दिन चुनावी परिणाम को बदल सकता है..

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