सुंदरदास के वो दोहे जो देते है मन को शांति


सुंदर मन मृग रसिक है, नाद सुनै जब कांन। 

हलै चलै नहिं ठौर तें, रहौ कि निकसौ प्रांन॥ 


सुन्दर मन मृग रसिक है, नाद सुनै जब कान। 

हलै चलै नहिं ठौर तें, रहौ कि निकसौ प्रांन॥ 


सुंदर बिरहनि अति दुखी, पीव मिलन की चाह। 

निस दिन बैठी अनमनी, नैननि नीर प्रबाह॥ 


सुंदर दुर्जन सारिषा, दुखदाई नहिं और। 

स्वर्ग मृत्यु पाताल हम, देखे सब ही ठौर॥ 


बहुत छिपावै आप कौं, मुझे न जांगै कोइ। 

सुंदर छाना क्यौं रहै, जग में जाहर होइ॥ 


मन ही बडौ कपूत है, मन ही महा सपूत। 

सुन्दर जौ मन थिर रहै, तौ मन ही अबधूत॥ 


जो कोउ मारै बान भरि, सुंदर कछु दुख नांहिं। 

दुर्जन मारै बचन सौं, सालतु है उर मांहिं॥

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