आँख मूँदकर देखना, अंधे की तरह देखना नहीं है , "विनोद कुमार शुक्ल"

विनोद कुमार शुक्ल हिंदी के प्रसिद्ध कवी और उपन्यासकार हैं. इनका जन्म 1जनवरी 1937 को भारत के के राज्य छत्तीसगढ़ के राजनंदगांव में हुआ था. बता दें की ये कवि होने के साथ-साथ शीर्षस्थ कथाकार भी हैं। उनके उपन्यासों ने हिंदी में पहली बार एक मौलिक भारतीय उपन्यास की संभावना को राह दी है...ऐसे ही इन्होने कई सारी कविताए भी लिखी हैं. जिसमें से एक कविता आज हम आपके लिए लाए हैं...
आँख बंद कर लेने से
अंधे की दृष्टि नहीं पाई जा सकती
जिसके टटोलने की दूरी पर है संपूर्ण
जैसे दृष्टि की दूरी पर।
अँधेरे में बड़े सवेरे एक खग्रास सूर्य उदय होता है
और अँधेरे में एक गहरा अँधेरा फैल जाता है
चाँदनी अधिक काले धब्बे होंगे
चंद्रमा और तारों के।
टटोलकर ही जाना जा सकता है क्षितिज को
दृष्टि के भ्रम को
कि वह किस आले में रखा है
यदि वह रखा हुआ है।
कौन से अँधेरे सींके में
टँगा हुआ रखा है
कौन से नक्षत्र का अँधेरा।
आँख मूँदकर देखना
अंधे की तरह देखना नहीं है।
पेड़ की छाया में, व्यस्त सड़क के किनारे
तरह-तरह की आवाज़ों के बीच
कुर्सी बुनता हुआ एक अंधा
संसार से सबसे अधिक प्रेम करता है
वह कुछ संसार स्पर्श करता है और
बहुत संसार स्पर्श करना चाहता है।
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