मैं ही इतना क्यों सोचता हूँ
मन को इतना क्यों नोचता हूँ
जिसको जो सोचना है सोचे
वो क्या सोचेंगे मैं क्यों सोचता हूँ।।
हम अच्छे हैं ऐसा क्यों सोचता हूँ
दूसरों को खुशकर
अपने को क्यों कोसता हूँ
जिसको कष्ट पहुंचे, वो कष्ट सहे
उसे कष्ट न पहुंचे, मैं क्यों सोचता हूँ।।
सदैव मधुर वाणी बोलूं, ये मैं सोचता हूँ
लोगों को खुश कर दूं, ये शब्द खोजता हूँ
लोग हैं, सीधे वाण चला देते हैं दिल पर
फिर भी लोग खुश रहे मुझसे,
ये मैं क्यों सोचता हूँ।।
डॉ. दिनेश कुमार दिव्यांश
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