ज़िन्दगी तूफ़ान में भी चल रही है, रात के सुनसान में भी जल रही है

ज़िन्दगी जब तक जियेंगे गीत मेरे
जब तलक ये गीत तब तक ज़िन्दगी है।

मौत कितने ही कफ़न मुझको उढ़ाए
धूल मेरे बाग़ में पतझर उड़ाए
लूट ले तूफ़ान मेरे क़ाफ़िले को
नाव को मंझधार मेरी लील जाए।

हाथ में जब तक मगर यह रागिनी है
गीत की मेरे हृदय में चांदनी है
है तुम्हारी प्रेरणा जब तक स्वरों में
मौत मेरे पींजरे की बंदिनी है।

साथ तुम हो फिर प्रलय क्या मौत क्या है
सजग जब तक प्रीत, तब तक ज़िन्दगी है।
ज़िन्दगी तूफ़ान में भी चल रही है
रात के सुनसान में भी जल रही है
खिल रही उद्यान में भी ज़िन्दगी ही
ज़िन्दगी श्मशान में भी पल रही है।

हो रहा नाटक मनोहर रात दिन का
जब तलक अभिनीत तब तक ज़िन्दगी है।

ज़िन्दगी है लहर तो पतवार भी है
ज़िन्दगी है कूल तो मंझधार भी है
आंधियों के साथ भी है ज़िन्दगी तो
प्रगति पथ की सजग पहरेदार भी है

है अगर जीना प्रलय से प्यार कर लो
और तुम संघर्ष से श्रृंगार कर लो
ज़िन्दगी है सिंधु पूनम की निशा का
गीत की नौका सजा कर पार कर लो।

जब तलक यह अधर की धरती उगाती
जीत का संगीत तब तक ज़िन्दगी है।

~बालस्वरूप राही

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