थोड़ी आँच बची रहने दो थोड़ा धुआँ निकलने दो

दुष्यंत कुमार त्यागी एक हिन्दी कवि , कथाकार और ग़ज़लकार थे. दुष्यंत कुमार ने साहित्य की दुनिया में अपने कदम रखे उस समय भोपाल के दो प्रगतिशील शायरों ताज भोपाली तथा क़ैफ़ भोपाली का ग़ज़लों की दुनिया पर राज था। हिन्दी में भी उस समय अज्ञेय तथा गजानन माधव मुक्तिबोध की कठिन कविताओं का बोलबाला था। उस समय आम आदमी के लिए नागार्जुन तथा धूमिल जैसे कुछ कवि ही बच गए थे। इस समय सिर्फ़ 44 वर्ष के जीवन में दुष्यंत कुमार ने अपार ख्याति अर्जित की.. तो आइए दुष्यंत कुमार त्यागी की थोड़ी आँच बची रहने दो थोड़ा धुआँ निकलने दो इस कविता को पढ़ते हैं...


मेरे स्वप्न तुम्हारे पास सहारा पाने आएँगे
इस बूढ़े पीपल की छाया में सुस्ताने आएँगे

हौले-हौले पाँव हिलाओ जल सोया है छेड़ो मत
हम सब अपने-अपने दीपक यहीं सिराने आएँगे

थोड़ी आँच बची रहने दो थोड़ा धुआँ निकलने दो
तुम देखोगी इसी बहाने कई मुसाफ़िर आएँगे

उनको क्या मालूम निरूपित इस सिकता पर क्या बीती
वे आए तो यहाँ शँख सीपियाँ उठाने आएँगे

फिर अतीत के चक्रवात में दृष्टि न उलझा लेना तुम
अनगिन झोंके उन घटनाओं को दोहराने आएँगे

रह-रह आँखों में चुभती है पथ की निर्जन दोपहरी
आगे और बढ़े तो शायद दृश्य सुहाने आएँगे
मेले में भटके होते तो कोई घर पहुँचा जाता
हम घर में भटके हैं कैसे ठौर-ठिकाने आएँगे

हम क्यों बोलें इस आँधी में कई घरौंदे टूट गए
इन असफल निर्मितियों के शव कल पहचाने जाएँगे

हम इतिहास नहीं रच पाए इस पीड़ा में रहते हैं
अब जो धारायें पकड़ेंगे इसी मुहाने आएँगे

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